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आगम
(१५)
“प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [३०], -------------- उद्देशक: [-], ------------- दारं [-], -------------- मूलं [३१३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१५], उपांग सूत्र - [४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [३१३]
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चक्खुदसणअणागारपा० ओहिदंसणअणा० केवलदंसणअणा०, एवं जीवाणपि, नेरइयाणं भंते ! कतिविधा पासणया पण्णचा, गो! दुविहा पं०, तं०-सागारपासणया० अणागा०, नेरहयाणं भंते ! सागारपा० काविहा पं०१, गो०। चउबिहा पं०,०-सुयणाणपा०ओहिणाणपा० सुअअण्णाणपा०विभंगणाण, नेरइयाणं भंते ! अणागारपा० कतिविहा पं०१, गो० दुविहा, तं-चक्खुदंसण ओहिद, एवं जाब थणियकुमारा । पुढविकाइयाणं भंते! कतिविहा पासणया पं०१, गो०! एगा सागारपा०, पुढविकाइयाणं भंते ! सागारपासणया कतिविहा पं०१, गो०। एगा सुयअनाणसागा. रपा०५०, एवं जाव वणफइकाइयाणं । बेइंदियाणं मंते ! कतिविहा पासणया पं०१, गो०! एगा सागारपासणया पं०, बेइंदियाण भंते ! सागारपा० काविहा पं०१, गो० दु०पं० २०-सुयणाणसागारपा० सुयअण्णाणसागारपा०, एवं तेईदियाणवि, चरिदियाणे पुच्छा, गो०। दु०पं०, ०-सागारपा० अणागारपा०, सागारपासणया जहा बेइंदियाणं, चउरिदियाणं भंते ! अणागारंपा० काविहा पं०१, गो०! एगा चक्खुदंसण. अणागारपा० ५०, मसाणं जहा जीवाणं, सेसा जहा नेरइया जाव वेमाणियाणं । जीवाणं भंते ! किं सागारपस्सी अणागारपस्सी, गो.! जीवा सागारपस्सीवि अणागारपस्सीवि, से केणटेणं भंते! एवं यु० जीवा सागार० अणागार०१, गो० जेणं जीवा सुतणाणी ओहिणाणी मणपज्जय० केवल सुअअण्णाणी विभंगनाणी ते णं जीवा सागारपस्सी, जेणं जीवा चक्खुदंसणी ओहिदंसणी केवलदसणी ते णं जीवा अणागारपस्सी, से एतेणद्वेणं गोयमा! एवं चु०-जीवा सागारपस्सीवि अणागा०, नेरइया गं भंते ! कि सागारपस्सी अणागा०, गो०! एवं चेव, नवरं सागारपासणयाए मणपज्जवनाणी केवलनाणी न बुचति,
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दीप अनुक्रम [५७३]
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