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आगम
(१४)
“जीवाजीवाभिगम" - प्रतिपत्ति : [३], ------- ---------------- उद्देशक: [(ज्योतिष्क)].-----......... मूलं [२०१-२०४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.........आगमसूत्र - [१४], उपांग सूत्र - [3] "जीवाजीवभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
श्रीजीवाजीवाभि० मलयगिरीयावृत्तिः
प्रत सूत्रांक [२०१-२०४]
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प्रतिपत्ती | तारान्तरं त्रुटिकं अमैथुनं सू. र्यादिदेव्यः उद्देशः२ सू०२०१२०४
॥३८३॥
चंद॑सि सीहासणंसि तुडिएणं सहिं दिव्वाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरित्तए?, गोयमा! - दस्स जोतिसिंदस्स जोतिसरपणो चंदवडेंसए विमाणे सभाए सुधम्माए माणवगंसि चेतियखंभंसि वइरामएम गोलवद्दसमुग्गएसु बहुयाओ जिसकहाओ सपिणखित्ताओ चिटुंति, जाओणं चंदस्स जोतिसिंदस्स जोतिसरन्नो अन्नेसिंच यहणं जोतिसियाणं देवाण य देवीण य अचणिजाओ जाव पलुवासणिज्जाओ, तासि पणिहाए नोपभू चंदे जोतिसराया चंदवडिं० जाव चंदसि सीहासपंसि जाव भुंजमाणे विहरित्तए, से एएणटेणं गोयमा! नो पभू चंदे जोतिसराया चंदवडेंसए विमाणे सभाए सुधम्माए चंदंसि सीहासणंसि तुडिएण सद्धिं दिव्वाई भोगभोयाई भुंजमाणे विहरितए, अनुत्तरं च णं गोयमा! पभू चंदे जोतिसिंदे जोतिसराया चंदसिए विमाणे सभाए सुधम्माए चंदंसि सीहासणंसि चउहिं सामाणियसाहस्सीहिं जाव सोलसहिं आपरक्खदेवाणं साहस्सीहिं अन्नेहिं बहहिं जोतिसिएहिं देवेहिं देवीहि य सद्धि संपुरिवहे महयाहयणहगीदवाइयतंतीतलतालतुडियघणमुइंगपडप्पवाइयरवेणं दिब्बाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरित्तए, केवलं परियारतुडिएण सद्धिं भोगभोगाई बुद्धीए नो चेय णं मेहुणवत्तियं ।। (सू०२०३) सूरस्स णं भंते ! जोतिसिंदस्स जोतिसरन्नो कइ अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ?, गोयमा! चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, तंजहा-सूरप्पभा आयवाभा अचिमाली पभंकरा, एवं अवसेसं
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दीप अनुक्रम [३१८-३२१]
॥३८३॥
अत्र मूल-संपादने शिर्षक-स्थाने एका स्खलना वर्तते-ज्योतिष्कदेवाधिकार: एक एव वर्तते, तत् कारणात् उद्देश:- २' अत्र २ इति निरर्थकम,
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