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आगम
(१४)
“जीवाजीवाभिगम" - उपांगसूत्र-३ (मूलं+वृत्ति:) प्रतिपत्ति: [२], -------- ------------ उद्देशक: [(द्विप्-समुद्र)], -------- मूलं [१५९] + गाथा
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१४], उपांग सूत्र - [३] "जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [१५९]]
-2012
गाथा
विखंभेणं बण्णओ जाय सीहासणं सपरिवारं ॥ से केणट्टेणं भंते! एवं बुचड़ गोथूभे आवास पच्चए २१, गोयना! गोथूभे णं आवासपञ्चते तत्थ २ देसे तहिं २ बहुओ खुड्डाखुड्डियाओ जाव गोधूभवणाई बहइं उप्पलाई तहेव जाब गोथभे तस्य देवे महिहीए जाय पलि ओवमट्टि. तीए परिवसति, से णं तत्थ चउपहं सामाणियसाहस्सीणं जाब गोधूमयस्स आवासपञ्चतस्स गोथूभाए रायहाणीए जाब विहरति, से लेण?णं जाब णिवे। रायहाणि पुच्छा गोषमा गोधभस्स आवासपथ्यतस्स पुरथिमेणं तिरियमसंखेजे दीवसमुरे वीनिवइत्सा अण्णंमि लवणसमुदतं चेव पमाणं तहेव सब्बं । कहिणं भंते ! सिवगस्स वेलंधरणागरापस्स दओभासणामे आवासपब्बते पपणसे?, गोयमा! जंबुद्दीवे णं दीवे मंदरस्स पब्वयस्स दक्षिणेणं लवणसमुई बायालीसं जोयणसहस्साई ओगाहित्ता एस्थ ण सिवगस्स वेलंधरणागरायरस दोभासे णामं आवासपचते पपणरो, तं चेव पमाणं जं गोधुभस्स, णवरि सब्बअंकामए अच्छे जाव पडिरूवे जाब अहोभाणियच्चो, गोयमा! दोभासे णं आवासपब्बते लवणसमुदे अजोयणियावेसे दगं सब्यतो समंता ओभासेति उज्जोवेति तवति पभासेति सिबए इत्य देवे महिड्डीए जाव रायहाणी से दक्विणेणं सिविगा दओभासस्स सेसं तं चेव ॥ कहि णं भंते! संखस्स वेलंधरणागरायस्स संखे णामं आवासपश्यते पण्णत्ते?, गोयमा! जंबुद्दीवे णं दीवे मंदरस्स पब्वयस्स पचस्थिमेणं बाया
दीप अनुक्रम [२०५-२०६]
KANER-4-24-
29-05
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