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________________ आगम (१४) “जीवाजीवाभिगम" - उपांगसूत्र-३ (मूलं+वृत्ति:) प्रतिपत्ति: [२], ------- ------------ उद्देशकः [(द्विप्-समुद्र)], -------- मूलं [१५९] + गाथा मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१४], उपांग सूत्र - [३] "जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति: प्रत सूत्रांक [१५९] श्रीजीवाजीवाभिः मलयगिरीयावृत्तिः प्रतिपत्तो वेलन्धरा वासादिः का उद्देशः२ सू०१५९ 4 2- ॥३०९॥ गाथा E7% आवासपञ्चता पण्णता? गोयमा! चत्तारि आवासपव्यता पण्णता, तंजहा-गोभे उदगभासे संखे दगसीमाए ॥ कहिणं भंते! गोथूभस्म वेलंधरणागरायस्स गोभे णाम आवासपच्यते प. पणते?, गोयमा! जंबूदीचे दीवे मदरस्स पुरथिमेणं लवणं समुई बायालीसं जोयणसहस्साई ओगाहित्ता एत्य णं गोथूभस्स वेलंधरणागरायस्स गोथूभे णामं आवासपथ्यते पण्णत्ते सत्तरसएकवीसाईजोयणसताई उर्दु उच्चत्तेणं चत्तारि तीसे जोयणसते कोसं च उवेधेणं मूले दसयावीसे जोयणसते आपामविक्खंभेणं मज्झे सत्ततेवीसे जोयणसते उरि चत्तारि चउवीसे जोयणसए आयामविक्खंभेणं मृले तिपिण जोयणसहस्साई दोपिणा य यत्तीसुत्सरे जोयणसए किंचिबिसेसूणे परिक्खेवेणं मजले दो जोयणसहस्साई दोषिण प छलसीते जोधणसने किंचि. विसेसाहिए परिक्खेवेणं उवरि एग जोयणसहस्सं तिपिण य ईयाले जोयणसते किंचिबिसेसणे परिक्खेवेणं मूले विस्थिपणे मज्झे संखित्ते उप्पि तणुए गोपुच्छसंठाणसंठिए सव्यकणगामए अच्छे जाव पडिरूवे ॥ से णं एगाए पउमवरवेदियाए एगेण च वणसंडेणं सवतो समंता संपरिक्खित्ते, दोण्हवि वण्णओ ॥ गोथभस्स णं आवासपब्बतस्स उवरि बहसमरमणिजे भूमिभागे पपणत्ते जाव आसयंति ॥ तस्स णं बहुसमरमणि जस्स भूमिभागस्स बहुमजादेसभाए एल्थ एगे महं पासायवटेंसए बावहूँ जोयणद्धं च उई उच्चत्तेणं तं चेव पमाणं अद्ध आयाम दीप अनुक्रम [२०५-२०६] 62-% ॥३०९॥ अत्र मूल-संपादने शिर्षक-स्थाने एका स्खलना वर्तते-विप्-समुद्राधिकार: एक एव वर्तते, तत् कारणात् उद्देश:- २' अत्र २ इति निरर्थकम् ~621~
SR No.004114
Book TitleAagam 14 JIVAJIVABHIGAM Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size230 MB
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