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________________ आगम (१४) “जीवाजीवाभिगम" - उपांगसूत्र-३ (मूलं+वृत्ति:) प्रतिपत्ति: [१], -------------------------- उद्देशक: -1, ------------------- मूलं [१३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१४], उपांग सूत्र - [३] "जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति: प्रत सूत्रांक [१३] दीप श्रीजीवा- अणोगाढाई आहारेंति, जाइं भंते ! ओगाढाई आहारेति ताई कि अणंतरोगाढाई आहारेंति परंपरोगाढाई आहारेंति ?, गोयमारप्रतिपत्ती जीवाभिमणतरोगाढाई आहारेंति नो परंपरोगाढाई आहारेंति, ताई भंते ! कि अणूई आहारेंति बायराई आहारेंति', गोयमा ! अणूईपिसूक्ष्मपृमलयगि- आहारैति वायराईपि आहारेंति, जाई भते! अणूई आहारेंति ताई भंते! किं उ९ आहारेंति अहे आहारेंति तिरियं आहारेंति ?,5थ्वीकायाः रीयावृत्तिः गोयमा! उ«पि आहारेंति अहेवि आहारति तिरिवंपि आहारेंति, जाई भंते ! उपि आहारेंति अहेवि आहारेंति तिरियपि आहारेंति सू०१३ भनाई कि आई आहारेंति मझे आहारेंति पजवसाणे आहारेंति ?, गोयमा! आइपि आहारेंति मझेनि आहारेंति पञ्चवसाणे (वि)आहा-|| ति, जाई भंते! आइपि आहारेंति जाव पजवसाणेवि आहारति ताई कि सविसए आहारति अविसए आहारवि', गोयमा ! सविसए8 आहारेंति नो अविसए आहारेंति, जाई भंते ! सविसए आहारेति ताई किं आणुपुब्धि आहारैति अणाणुपुलिंब आहारैति?, गोयमा! आणुपुर्दिय आहारेंति नो अणाणुपुलिंब आहारेंति, जाई भंते ! आणुपुलिंब आहारेंति ताई कि विदिसि आहारेंति चउदिसि आहारेति । पंचदिसिं आहारेंति दिसिं आहारेंति', गोयमा! निन्यापारणं छद्दिसिं, वापाय पडुच सिय तिदिसि सिय पउदिसि(सिय)पंचदिसि-18 | मिति ।” अस्य व्याख्या-"जाई भावतो वण्णमंताई" इत्यादि प्रश्नसूत्र सुगम् , भगवानाह-गौतम! 'ठाणमग्गणं पदुचेति तिष्ठन्ति है विशेषा अस्मिन्निति स्थानं-सामान्यमेकवर्ण द्विवर्ण त्रिवर्णमित्यादिरूपं तस्य मार्गणम्-अन्वेषणं तत्प्रतीत्य, सामान्यचिन्तामाश्रित्येति भावार्थः, एकवर्णान्यपि द्विवर्णान्यपीलादि सुगर्म, नवरं तेषामनन्तप्रदेशिकानां स्कन्धानामेकवर्णवं द्विवर्णत्वमित्यादि व्यवहारनयमता-18 पेक्षया, निश्चयनयमतापेक्षया खनन्तप्रादेशिकस्कन्धोऽस्पीयानपि पञ्चवर्ण एवं प्रतिपत्तव्यः, 'विहाणमग्गणं पदुधे'त्यादि यावद् [विधान -विशेषः,] विविक्तम्-इतरव्यवच्छिन्नं धान-पोषणं स्वरूपस्य यत्तत्प्रतीत्य सामान्यचिन्तामाश्रित्येति शेषः, कृष्णो नील इत्यादि प्रति-I अनुक्रम [१४] ~ 41~
SR No.004114
Book TitleAagam 14 JIVAJIVABHIGAM Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size230 MB
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