________________
आगम
(१४)
“जीवाजीवाभिगम" - उपांगसूत्र-३ (मूलं+वृत्ति:) प्रतिपत्ति : [१], ------------------------- उद्देशक: -], --------------------------- मूलं [१३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.........आगमसूत्र - [१४], उपांग सूत्र - [३] "जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [१३]
दीप
हा तोऽन्यतरस्थितीनि तद्भावावस्थानेन जघन्यादिरूपां स्थितिमधिकृत्ये"ति, भावतो वर्णवन्ति गन्धवन्ति रसवन्ति स्पर्शवन्ति च, प्रतिपरमाण्वेकेकवर्णगन्धरसद्विस्पर्शभावात् , "एवं जहा पण्णवणाए" इत्यादि, ''एवम्' उक्तेन प्रकारेण यथा प्रज्ञापनायामष्टाविंशतितमे | आहारपदे प्रथमोदेशके तावद्वक्तव्यं यावत् "सिय तिदिसि सिय चउदिसि सिय पंचदिसि"मिति, तचैवम्-'जाई भावतो वण्णमताई आहारेति ताई किं एगवण्णाई आहारेंति जाव पंचवण्णाई आहारेंति', गोवमा! ठाणमग्गणं पडुच्च एगवण्णाईपि आहारेंति | जाव पंचवण्णाई पि आहारेंति, विहाणमग्गणं पडुच्च कालवण्णाइंपि आहारेंति जाव सुकिल्लवण्णाइपि आहारेंति, जाई कालवण्णाईपि | आहारेति ताई किं एगगुणकालाई आहारेंति जाव दसगुणकालाई आहारेंति संखिजगुणकालाई आहारैति असंखेजगुणकालाई आहारैति अणंतगुणकालाई आहारेति ?, गोयमा! एगगुणकालाईपि आहारेंति जाव अणंतगुणकालाइंपि आहारेंति एवं जाव मुक्लिाइंपि आहारेंति, एवं गंधतोबि रसवोवि ॥ जाई भावतो फासमंताई आहारेंति ताई कि एगफासाई आहारेंति दुफासाई आहारेंति जाव अट्ठफासाई आहारेंति?, गोयमा! ठाणमग्गणं पडुश्च नो एगफासाई आहारेंति नो दुफासाई आहारेंति नो तिफासाइपि आहारेति चउ| फासाइंपि आहारेंति जाब अट्ठफासाइपि आहारेंति, विहाणमग्गर्ण पहुच कक्खडाईपि आहारेंति जाव लुक्खाईपि आहारेति ॥ जाई | फासतो कक्खडाईपि आहारेंति ताई किं एगगुणकक्खडाई आहारेति जाव अर्णतगुणकक्खडाइपि आहारेंति ?, गोयमा! एगगुणकक्खहाइपि आहारेंति जाव अर्णतगुणकक्खडाईपि आहारेंति, एवं अट्ठवि फासा भाणियब्वा जाव अणंतगुणलुक्खाइपि आहारेति ॥ जाई
भंते ! अर्णतगुणलुक्खाई आहारेति साई भंते ! किं पुट्ठाई आहारैति अपुढाई आहारेंति ?, गोयमा! पुट्ठाई आहारेंति नो अपुढाई | जीच०४ाहारैति, जाई पुट्ठाई आहारेंति साई भंते ! किं ओगाढाई आहारेंति अगोगाढाई आहारेंति ?, गोयमा! ओगाढाई आहारेंति नो|
अनुक्रम
[१४]
CAऊन
Jatician
~ 40~