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________________ आगम (१४) “जीवाजीवाभिगम" - उपांगसूत्र-३ (मूलं+वृत्ति:) प्रतिपत्ति : [१], ------------------------- उद्देशक: -], --------------------------- मूलं [४२] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [१४], उपांग सूत्र - [३] "जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति: प्रत सूत्रांक प्रतिपत्तो देवाः सू०४२ [४२] दीप अनुक्रम [५०] श्रीजीवा-18 पणसा, तंजहा-भवधारणिवा य उत्तरवेब्विया य, तस्थ णं जे ते भवधारणिज्जा ते णं समचजीवाभि उरससंठिया पणत्ता, तत्ध णं जे ते उत्तरवेउब्बिया ते णं नाणासंठाणसंठिया पण्णत्ता, चमलयगिरीयावृत्तिः तारि कसाया चत्तारि सपणा छ लेस्साओ पंच इंदिया पंच समुग्धाता सन्नीवि असन्नीवि इ स्थिवेदावि पुरिसबेदावि नो नपुंसगवेदा, पज्जत्ती अपज्जत्तीओ पंच, दिट्ठी तिन्नि तिण्णि दंसणा, ॥४८॥ णाणीवि अपणाणीवि, जे नाणी ते नियमा तिण्णाणी अण्णाणी भयणाए, दुविहे उवओगे ति विहे जोगे आहारो णियमा छदिसिं, ओसन्नकारणं पडुच वण्णतो हालिहसुकिल्लाई जाव आहारमाहारेंति, उववातो तिरियमणुस्सेसु, ठिती जहन्नेणं दस वाससहस्साई उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई, दुविधावि मरंति, उब्वहित्ता नो नेरइएसु गच्छंति तिरियमणुस्सेसु जहासंभवं, नो देवेसु गच्छति, दुगतिया दुआगतिया परित्ता असंखेचा पण्णत्ता, से तं देवा, से तं पंचेंदिया, सेत्तं ओराला तसा पाणा ॥ (सू०४२) अथ के ते देवाः १, सूरिराह-देवाश्चतुर्विधाः प्रज्ञप्ता:, तद्यथा-भवनवासिनो व्यन्तरा ज्योतिषका वैमानिकाच, 'एवं भेदो भाणि-12 यवो जहा पन्नवणाए' इति, 'एवम्' उक्तेन प्रकारेण भेदो भणितव्यो यथा प्रज्ञापनायां, स चैवम्-" से किं तं भवणवासी?, भवणवासी दसबिहा पन्नत्ता" इत्यादिरूपस्तत एव सव्याख्यान: परिभावनीयः, 'ते समासतो दुविहा पण्णत्ता-पजत्तगा य +CAAMSACSCLASSOCIAL ॥४८॥ ~99~
SR No.004114
Book TitleAagam 14 JIVAJIVABHIGAM Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size230 MB
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