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आगम
(१३)
“राजप्रश्निय”- उपांगसूत्र-१ (मूलं+वृत्तिः )
------------ मूलं [१३-१४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१३], उपांग सूत्र - [२] "राजप्रश्नीय" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
दिवानां मूभान्तिके
श्रीराजपनी मलयगिरीया तिः ॥२६॥
प्रत सूत्रांक [१३-१४]
प्रादुर्भावः
दीप अनुक्रम
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तए णं ते सरियाभविमाणयासिणो बहवे बेमाणिया देवा देवीओ य पायत्नाणियाहिवइस्स देवस्स अंतिए एयमढे सोचा णिसम्म हट्ठतुट्ठ जावहियया अप्पेगझ्या वंदणवत्तियाए अप्पेगइया पूयणवत्तियाए अप्पेगड्या सकारवानियाए एवं संमाणवत्तियाए कोउहलवत्तियाए अप्पे असुयाई सुणिस्सामो सुयाई अट्ठाई हेऊई पसिणाई कारणाई वागरणाई पुच्छिस्सामो, अप्पेगइया सूरियाभस्स देवस्स वयणमणुयत्तमाणा अप्पेगतिया अन्नमन्नमणुयत्तमाणा अप्पेगइया जिणभत्निरागेणं अप्पेगइया धम्मोति अप्पेगइया जीयमेयंति कहु सब्बिड़ीए जाव अकालपरिहीणा चेव सूरियाभस्स देवस्स अंतिय पाउम्भवंति। (सू०१३)।तएणं से सरि याभे देवे ते सरियाभविमाणवासिणो वहवे माणिया देवा यदेवीओ य अकालपरिहीणा चेव अंतियं पाउभवमाणे पासति पासित्ता हतुटु जाव हियए आमिओगियं देवं सद्दावति आभिऔ०२ सहाविना एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! अणगसंभसयसनिविटुं लीलट्ठियसालभंजियागं ईहामियउसभतुरगनरमगरविहगवालगकिंनररुरुसरभचमरकुंजरवणलयपउमलयभत्निचिनं खंभुग्गयवरवइरवेश्यापरिगयाभिरामं विजाहरजमलजुयलजंतजुनंपिव अञ्चीसहस्समालिणीयं रूवगसहस्सकलियं भिसमाणं चकूखुल्लोयणलेसं मुहफासं सस्सिरीयरूवं घंटावलिचलियमहरमणहरसरं मुह कंतं दरिसणिज णिउणोचियमिसिमिसिंतमणिरयणघंटियाजालपरिकखिनं जोयणसयसहस्सविच्छिण्णं दिव्वं गमणसजं सिग्घ
दिव्ययानकारणं
म्०१४
[१३-१४]
IN२६॥
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| भगवन्त महावीरस्य वन्दनार्थे गमनाय देवानाम् प्रादुर्भाव:
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