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आगम
(१३)
प्रत
सूत्रांक
[३४]
दीप
अनुक्रम
[३४]
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.
श्रीराजमनी मलयगिरी या वृत्तिः
॥ ८२ ॥
“राजप्रश्निय”- उपांगसूत्र - १ (मूलं + वृत्तिः )
佘辛柴众辛
मूलं [३४]
आगमसूत्र [१३], उपांग सूत्र [२] "राजप्रश्नीय" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्तिः
ategory खंभे खंभवाहासु खंभसीसेसु खंभपुदंतरेसु सुयीमु सुयीमुखे सु सूईफल एसुमईपुरंत पक्वे पक्खवाहासु पक्खपेरैतेसु पक्खपुडेंतरेसु बहुयाई उप्पलाई पउमाई कुमुपाई णलिणातिं सुभगाई सोगंधियाई पुंडरीयाई महापुंडरीयाणि सयवत्ताई सहस्सवत्ताई सहरयणामयाई अच्छाई पडिवाई महया वासिकयछत्तसमाणाई पण्णत्ताई समणाउसो !, से एएवं अद्वेणं गोयमा ! एवं बुवइ - पउमव रवेड्या २ । परमवरवेइया णं भंते! किं सासया० १, गोयमा ! सिय सासया लिय असासया, से केणट्टेणं भंते! एवं बुबइ - सिय सासया सिय असासया १, गोयमा ! agery सासया बन्नपजवेहिं गंधपजवेहिं रसपजवेहिं फासपज्ञवेहिं असासया, से तेणणं गो
यमा ! एवं बुवति सिय सासया सिय असासया । पउमवर वेश्या णं भंते! कालओ केवचिरं होइ ?, गोयमा ! ण कयाचि णासि ण कयावि णत्थि न कयावि न भविस्सइ, भुवि च हवइ य भविस्सइ य, धुवाणिया सासवा अक्खया अहया अवट्टिया णिचा पउमवरवेइया । से णं वणसंडे देणाई दो जोयणाई चक्कालवित्र खंभेणं उवयारियालेणसमे परिक्खेवेणं, वणसंडवण्णतो भाणितो. जाव विहरति । तस्स णं उवयारियालेणस्स चउदिसिं चत्तारि तिसोवाणपडिरूवगा पण्णत्ता वण्णओ, तोरणा शया छत्ताइच्छन्ता तस्स णं उवयारियालयणस्स उवरिं बहुसमरमणिले भूमिभागे पण्णत्ते जाव मणीण फासो ॥ ( सू० ३४ )
For Parts Only
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पनवरवेदिकाय.
सू० ३४
॥ ८२ ॥
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