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________________ आगम “विपाकश्रुत” - अंगसूत्र-११ (मूलं+वृत्ति:) (११) श्रतस्कंध: [१], ........................--- अध्य यन [६] ------ -- - मूल [२६] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [११], अंग सूत्र - [११] "विपाकश्रुत" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [२६] नगरे होत्था रिद्ध०, तत्थ णं सीहपुरे नयरे सीहरहे नाम राया होत्या, तस्स णं सीहरहस्स रन्नो दुजोहणे | नामे चारगपालए होत्था अहम्मिए जाच दुप्पडियाणंदे, तस्स णं दुजोहणस्स चारगपालगस्स इमेयारूवे चारगभंडे होत्था बहवे अयकुंडीओ अप्पेगड्याओ तंबभरियाओ अप्पेगइयाओ तउयभरियाओ अप्पेगन सीसगभरियाओ अप्पेग० कलकल भरियाओ अप्पेग खारतेल्लभरियाओ अगणिकायंसि अद्दहिया चिट्ठति, तस्स णं दुजोहण चारग० चहवे उहियाओ आसमुत्तमरियाओ अप्पेग० हत्यिमुत्तभरिआओ अप्पेग. गोमुत्तभरियाओ अप्पेग० महिसमुत्तभरियाओ अप्पेग उहमुत्तभरियाओ अप्पेग अयमुत्तभरियाओ* अप्पेग० एलमुत्तभरियाओ बहुपडिपुनाओ चिट्ठति। तस्स णं दुजोहण चारगपालगस्स, बहवे हत्धुंडयाण य पायंदुयाण य हडीण य नियलाण य संकलाण य पुंजा निगरा य सन्निक्खित्ता चिट्ठति, तस्स णं दुजोहण चारग. स्स बहवे वेणुलयाण य वेत्तलयाण य चिञ्चालयाण य छियाणं कसाण य वायरासीण य पुंजा णिगरा दीप अनुक्रम [२९] १'चारगपाले'त्ति गुप्तिपालकः । २ 'चारगभंडे'त्ति गुस्युपकरणम् । ३ 'हत्धुंडुयाण त्ति अण्डूनि-काष्ठादिमयवन्धनविशेषाः, | एवं पादान्दुकान्यपि, 'हडीण यत्ति हडया-बोटकाः 'पुंजति सशिखरो राशिः 'निगर'त्ति राशिमात्रम् । ४ 'वेणुलयाण योति | स्थूलवंशलतानां 'वेत्तलयाण यत्ति जलजवंशलतानां 'चिंच'त्ति चिचालतानाम् अम्बिलिकाकम्बानां 'छियाण'त्ति लक्ष्णचर्मकशानां 'कसाण यति चर्मयष्टिकानां 'वायरासीण'ति बल्करश्मयो बटादित्वगमयसिंदुराणि नादनप्रयोजनानि तेषां पुजास्तिष्ठन्तीति योगः । KAR अनु.१४ नन्दिवर्धनस्य पूर्वभव: ~ 80~
SR No.004111
Book TitleAagam 11 VIPAK SHRUT Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages132
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size28 MB
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