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________________ आगम (०८) “अन्तकृद्दशा” - अंगसूत्र-८ (मूलं+वृत्ति:) वर्ग: [७], -------- -------------- अध्ययनं [१-१३] ------- -- मूलं [१६] + गाथा: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.........आगमसूत्र - [०८], अंग सूत्र - [०८] “अन्तकृद्दशा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [१६] गाथा अन्सकृद्द-18 |गुणसिलते चेतिते सेणिते राया वन्नतो, तस्स णं सेणियस्स रपणो नंदा नाम देवी होत्था वन्नओ, सामी ७ वर्गे शात समोसढे परिसा निग्गता, तते णं सा नंदादेवी इमीसे कहाते लट्ठा कोटुंबियपुरिसे सहावेति २ जाणं जहा पउमावती जाव एकारस अंगाई अहिजित्ता वीसं वासाई परियातो जाव सिद्धा । एवं तेरसवि दे- नि १३ ॥२५॥ वीओ णंदागमेण णेयव्वातो॥ सत्तमो वग्गो सम्मत्तो ॥ (सू०१६) जति णं भंते ! अहमस्स वग्गस्स उक्खे-18| ८ वर्गे वओ जाव दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं०-काली १ सुकाली २ महाकाली ३ कण्हा ४ सुकण्हा ५ महाकण्हा | काल्यध्य६। वीरकण्हा७ य बोद्धव्वा रामकण्हा ८ तहेव य ॥१॥ पिउसेणकण्हा ९नवमी दसमी महासेणकण्हा १० य॥ यनं १ जति दस अज्झयणा पढमस्स अज्झयणस्स के अढे पन्नते?, एवं खलु जंबू! तेणं का०२चंपा नाम नगरी सू०१७ होत्था पुन्नभद्दे चेतिते, तत्थ णं चंपाए नयरीए कोणिए राया वण्णतो, तत्थ णं चंपाए नयरीए सेणियस्स है। रनो भज्जा कोणियस्स रणो चुल्लमाउया काली नाम देवी होत्या वाणतो जहा नंदा जाव सामातियमातियातिं एकारस अंगाई अहिज्जति, बहुहिं चउत्थ० जाव अप्पाणं भावमाणी विहरति, तते णं सा काली अण्णया कदाइ जेणेव अज्जचंदणा अजा तेणेव उवागता २ एवं व०-इच्छामि गं अज्जाओ! तुम्भेहिं अन्भणु-1 [पणाता समाणा रयणावलि तवं उपसंपज्जेसाणं विहरेत्तते, अहासुहं०, तसा काली अजा अजचंदणाए ॥२५॥ १ अष्टमे तु किमपि लिख्यते-रयणावलि ति रखावली-आभरणविशेषः रजावलीव रत्नावली, यथा हि रमावली उभयत आदिसूक्ष्मस्थूलस्थूलतरविभागकाहलिकाख्यसौवर्णावयबद्वययुक्ता भवति, पुनर्मध्यदेशे स्थूलविशिष्टमण्यलङ्कृता च भवति, एवं यत्तपः पट्टादावु दीप अनुक्रम [४१-४५] | कालीराणी-तस्या दीक्षा एवं रत्नावली तप: वर्णनं ~534
SR No.004108
Book TitleAagam 08 ANTKRUT DASHA Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages69
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size15 MB
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