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________________ आगम (०५) "भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [९], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [३३], मूलं [३८८-३९०] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [३८८-३९०] ॥४८९॥ दीप अनुक्रम [४६८-४७०] व्याख्या- हारे अरसजीवी विरसजीवी जाव तुच्छजीची वसंतजीवी पसंतजीवी षिविराजीवी,हंता गोयमा || उद्देशः३३ प्रजातः जमाली णं अणगारे अरसाहारे विरसाहारे जाव विवित्तजीवी । जति णं भंते ! जमाली अणगारे अर अभयदेवी किल्बिषिया वृत्तिः साहारे विरसाहारे जाव विवित्तजीवी कम्हा णं भंते ! जमाली अणगारे कालमासे कालं किच्चा लंतए तरकासू३८९ कप्पे तेरससागरोवमट्टितिएसु देवकिपिसिएम देवेसु देवकिबिसियत्ताए उबवन्ने ?, गोयमा ! जमाली गं | अणगारे आयरियपडिणीए उवज्झायपडिणीए आयरियउवज्झायाणं अयसकारए जाव चुप्पाएमाणे जाव बहूई संसारः वासाइं सामनपरियागं पाउणित्ता अद्धमासियाए संलेहणाए तीसं भत्ताई अणसणाए छेदेति तीसं०२ तस्स सू ३९० ठाणस्स अणालोइयपडिफ्ते कालमासे कालं किच्चा लंतए कप्पे जाव उववन्ने । (मूत्रं० ३८९) जमाली गं भंते । देवे ताओ देवलोयाओ आउक्तएणं जाव कहिं उववज्जा, गोयमा ! चत्तारि पंच तिरिक्खजोणियमणुस्सदेवभवग्गहणाई संसारं अणुपरियहित्ता तओ पच्छा सिज्झिहितिजाव अंतं काहेति । सेवं भंते २ ति॥ (सूत्र० ३९०)। जमाली समत्तो ॥९॥ ३३ ॥ | 'आयाए'त्ति आत्मना असम्भाबुम्भावणाहिं'ति असद्भावानां-वितथार्थानामुद्भावना-उत्प्रेक्षणानि असद्भावोभावना४ास्ताभिः मिच्छत्ताभिनिवेसेहि यति मिथ्यात्वात-मिथ्यादर्शनोदयाद येऽभिनिवेशा-आमहास्ते तथा तैः 'बुग्गाहेमाणे'त्ति || | ब्युग्राहयन विरुद्भग्रहवन्तं कुर्वन्नित्यर्थः 'बुपाएमाणे ति व्युत्पादयन् दुर्विदग्धीकुर्वन्नित्यर्थः । 'केसु कम्मादाणेसु'त्ति | ॥४८९॥ केषु कमेहेतुषु सरिस्वत्यर्थः 'अजसकारगे'त्यादी सर्वदिग्गामिनी प्रसिद्धिय॑शस्तत्प्रतिषेधादयः, अवर्णस्वप्रसिद्धिमात्रम् , जमाली-चरित्रं ~983~
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
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