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आगम
(०५)
"भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [९], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [३३], मूलं [३८६-३८७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [३८६-३८७]
|जीवे जमाली, तए णं से जमाली अणगारे भगवया गोयमेणं एवं खुत्ते समाणे संकिए कंखिए जाव कल|ससमावन्ने जाए यावि होत्था, णो संचाएति भगवओ गोयमस्स किंचिवि पमोक्खमाइक्खित्तए तुसिणीए
संचिट्ठइ,जमालीतिसमणे भगवं महावीरे जमालिं अणगारं एवं वयासी-अस्थि णं जमालीममं बहवे अंतेवासी Bासमणा निग्गंथा छउमत्था जेणं एवं वागरणं वागरित्तए जहाणं अहं नो चेवणं एयप्पगारं भासं भासित्तए
जहा णं तुमं, सासए लोए जमाली ! जन्न कयावि णासि ण कयाविण भवति ण कदावि ण भविस्सह भुवि &च भवाइ य भविस्सह य धुवे णितिए सासए अक्खए अवए अवट्टिए णिचे, असासए लोए जमाली। जओ
ओसप्पिणी भवित्ता उस्सप्पिणी भवइ उस्सप्पिणी भवित्ता ओसप्पिणी भवइ, सासए जीवे जमाली! जं| न कयाइ णासि जाब णिचे असासए जीवे जमाली जन्नं नेरइए भवित्ता तिरिक्खजोणिए भवइ तिरिक्ख
जोणिए भवित्ता मणुस्से भवद मणुस्से भवित्ता देवे भवइ । तए णं से जमाली अणगारे समणस्स भगवओx IMIमहावीरस्स एवमाइक्खमणस्स जाव एवं परूचेमाणस्स एयमझु णो सद्दहइ णो पत्तिएइ णो रोएइ एपमहूं।
असद्दहमाणे अपत्तियमाणे अरोएमाणे दोचंपि समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ आयाए अवक3 मह दोबंपि आयाए अवकमित्ता बहूहिं असम्भाचुन्भावणाहिं मिच्छत्ताभिणिवेसेहि य अप्पाणं च परं च ६ तदुभयं च बुग्गाहेमाणे बुप्पाएमाणे बहूयाई वासाई सामन्नपरियागं पाउणइ २ अद्धमासियाए संलेहणाए
दीप अनुक्रम [४६६-४६७]
जमाली-चरित्रं
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