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________________ आगम (०५) "भगवती'- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [१], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [२], मूलं [२०], मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: RSSC4640 प्रत सूत्रांक [२०] दीप अनुक्रम [२६] यधरणीप्रायोग्य निर्वतितं वासुदेवेनेव तंत्ताशमङ्गीकृत्योच्यते-पूर्वबद्ध कश्चिन्न वेदयति, अनुदीर्णत्वात्तस्य, यदा पुनर्यत्रैव बद्धं तत्रैवोत्पद्यते तदा वेदयतीत्युच्यते, तथैव तस्योदितत्वादिति ॥ अथ चतुर्विशतिदण्डकमाहारादिभिनि| रूपयन्नाह नेरइया णं भंते ! सब्वे समाहारा सब्वे समसरीरा सब्बे समुस्सासनीसासा, गोयमा नो इणढे समढे । से केण्डेणं भंते ! एवं बुच्चा-नेरइया नो सब्वे समाहारा नो सब्वे समसरीरा नो सब्वे समुस्सास| निस्सासा, गोयमा ! नेरइया दुविहा पन्नत्ता, तंजहा-महासरीरा य अप्पसरीरा य, तत्थ णं जे ते महा-IN सरीरा ते बहुतराए पोग्गले आहारेंति बहुतराए पोग्गले परिणामेति बहुतराए पोग्गले उस्ससंति बहुत राए पोग्गले नीससंति अभिक्खणं आहारति अभिक्खणं परिणामेति अभिक्खणं ऊससंति अभिक्खणंद यानी०, तत्थ णं जे ते अप्पसरीरा ते णं अप्पतराए पुग्गले आहारति अप्पतराए पुग्गले परिणामेति अप्प-||* तराए पोग्गले उस्ससंति अप्पतराए पोग्गले नीससंति आहच आहारेंति आहच्च परिणामेंति आहच | उस्ससंति आहच नीससंति, से तेणडेणं गोयमा! एवं वुच्चह-मेरइया नो सब्वे समाहारा जाब नो सब्वे समुस्सासनिस्सासा ॥ नेरईया णं भंते ! सब्वे समकम्मा, गोयमा ! णो इणढे समहे, से केणठेणं, गो|यमा ! नेरइया दुविहा पण्णत्ता, तंजहा-पुब्वोववन्नगा य पच्छोववन्नगा य, तत्थ णं जे ते पुब्बोववन्नगा ते णं अप्पकम्मतरागा, तत्व णं जे ते पच्छोववन्नगा ते णं महाकम्मतरागा, से तेणढेणं गोयमा ! | नेर 2-4 6 --62 Lilanmurary.au ~83~
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
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