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आगम
(०५)
"भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:)
शतक [८], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [९], मूलं [३४९] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत
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सूत्रांक
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[३४९]
व्याख्या
सरीरपयोगबंधे य अपजससचट्ठसिहअणुत्तरोववाइय जाब पयोगधंधे य । वेवियसरीरप्पयोगबंधे ण प्रज्ञप्तिः कस्स कम्मस्स उदएणं ?, गोयमा! वीरिपसजोगसहबयाए जाव आउयं वा लद्धिं वा पडच वेडवियसरीर- उद्देशा अभयदेवी-प्पयोगनामाए कम्मस्स उदएणं वेउबियसरीरप्पयोगधंधे । वाउचाइयएगिदियवउचियसरीरप्पयोग० पुच्छा, वैक्रियादिया वृत्तिः गोयमावीरियसजोगसचयाए चेव जाव लडिं च पडच वाउकाइयएगिदियवेउषिय जाव बंधो।रयणप्पभापुढ
बन्धः
सू३४९ ॥४०४॥
विनेरइयपंचिंदियवेउवियसरीरप्पयोगबंधे गंभंते!कस्स कम्मस्स उदएणं?,गोयमा बीरियसयोगसहवयाए जाव
आउयं वा पडुन रयणप्पभापुढवि०जाव बंधे, एवं जाव अहेससमाए । तिरिक्खजोणियपंचिंदियवेउबियसरी| रपुच्छा, गोषमा 1 पीरिय० जहा बाउकाइयाणं, मणुस्सपंचिंदियवेउबिया एवं,चेव, असुरकुमारभवणवा-|| सिदेवपंचिंदियवेउधियः जहा रयणप्पभापुढविनेरइया एवं जाव थणियकुमारा, एवं वाणमंतरा एवं जोइसिया एवं सोहम्मकप्पोवगया वेमाणिया एवं जाव अचुयगेवेजकप्पातीया वेमाणिया, एवं चेव अणुसरो- 8 धवाइयकप्पातीया वेमाणिया एवं चेष । वेउपियसरीरप्पयोगबंधे णं भंते । किं देसवंधे सवपंधे ?, गोयमा देसबंधेवि सवर्षधेवि, वाउकाइयएगिदिय एवं चेव रयणप्पभापुढविनेरइया एवं चेव, एवं जाव अणुसरोव
वाइया । वेउवियसरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! कालओ केवचिरं होर?, गोयमा ! सवर्षधे जहलेणं एवं समय ॥४०॥ &ाउकोसेणं दो समया, देसर्वधे जहनेणं एक समयं उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई समयूणाई ॥ चाउकाइए-14 Pानिंदियवेउवियपुच्छा, गोयमा सवयंधे एक समयं देसर्वधे जहनेणं एवं समयं उक्कोसेणं अंतोमुहुर्त ॥ रय-12
दीप
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अनुक्रम [४२५]
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वैक्रिय-प्रयोगबन्ध: एवं तस्य भेदा:
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