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आगम
(०५)
"भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं वृत्ति:) शतक [८], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [८], मूलं [३४०-३४१] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
FICशतके
प्रत सूत्रांक [३४०-३४१]
व्याख्या-5 तदसम्भवादिति 'त' मित्यादि, 'तत्' ऐपिथिक कर्म 'देसेणं देस'ति 'देशेन' जीवदेशेन 'देश' कर्मदेशं बनाती-13 प्रज्ञप्तिः त्यादि चतुर्भङ्गी, तत्र च देशेन कर्मणो देशः सर्व वा कर्म सर्वात्मना वा कर्मणो देशो न बध्यते, किं तर्हि १, सर्वा- उद्देशः८ अभयदेवी-|| त्मना सर्वमेव बध्यते, तथास्वभावत्वाजीवस्येति ॥ अथ साम्परायिकबन्धनिरूपणायाह
सांपरायिया वृत्तिः१॥ | संपराइयण्णं भंते ! कम्मं किं नेरइयो बंधइ तिरिक्खजोणीओ बंधइ जाव देवी बंधइ ?, गोयमा ! नेरइ-||
क बन्धः
सू ३४३ ॥३८॥ माओवि पंधर तिरिक्खजोणीओवि बंधा तिरिक्खजोणिणीवि बंधह मणस्सोवि बंधइ मणुस्सीवि बंधा देवोविद ||
बंधइ देवीवि बंधइ ॥ तं भंते ! किं इत्थी बंधइ पुरिसो बं० तहेव जाब नोइत्थीनोपुरिसोनोनपुंसओ बंधइ ?, ट्र गोयमा! इत्थीवि वं० पुरिसोवि बंधइ जाव नपुंसगोवि बंधइ अहवेए य अवगयवेदो य बंधड़ अहए य
अवगयवेया य बंधा । जह भंते । अवगयवदो य बंधइ अवगयवेदा य बंधन्ति तं भंते ! किं इत्थीपच्छाकडो बंधह पुरिसपच्छाकडो बंधइ ? एवं जहेब ईरियावहियाबंधगस्स तहेव निरवसेसं जाव अहवा इत्थीपच्छा
कडा य पुरिसपच्छाकडा य [बंध ] नपुंसगपच्छाकडा य बंधति ॥ तं भंते ! किंबंधी बंधा बंधिस्सह १ है बंधी बंधड़ न वंधिस्सइ २ बंधी न बंधइ बंधिस्सइ ३ बंधी न बंधइ न बंधिस्सइ ४१, गोयमा ! अस्थगतिए
बंधी बंधड बंधिस्सइ १ अत्धेगतिए बंधी बंधइ न बंधिस्सइ २ अत्धेगतिए बंधी न घंघह बंधिस्सह ३ अस्थेगतिए बंधीन बंधइन बंधिस्सइ ॥ तं भंते । किसाइयं सपज्जवसियं बंधइ ? पुच्छा तहेव, गोयमा ! साइयं वा 8 सपज्जवसियं बंधइ अणाइयं वा सपज्जवसियं बंधइ अणाइयं वा अपज्जवसियं बंधहणो चेव णं साइर्य अप-ट
॥३८७॥
दीप अनुक्रम [४१३४१४]
अत्र मूल-संपादने सूत्र-क्रमांकने एका स्खलना जाता, सू.३४२ स्थाने सू.३४३ लिखितं
बन्ध: एवं बन्धस्य भेदा:
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