SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 758
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम (०५) "भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं वृत्ति:) शतक [८], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [६], मूलं [३३४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [३३४] भावाओ ॥ १॥ इति । [आलोचनापरिणतः सम्यक् संप्रस्थितो गुरुसकाशे । यदि वियतेऽन्तरेव तथाऽपि शुद्ध इति शतके भावात् ॥१॥] स्थविरात्मभेदेन चेह द्वे अमुखसूत्रे, द्वे कालगतसूत्रे, इत्येवं चत्वारि असंप्राप्तसूत्राणि ४, संप्राप्तसूत्रा- उद्देशः अभयदेवी- ण्यप्येवं चत्वार्येव ४, एवमेतान्यष्टौ पिण्डपातार्थ गृहपतिकुले प्रविष्टस्य, एवं विचारभूम्यादावष्ट ८, एवं ग्रामगमनेऽष्टी, प्रदोपादौ या दृत्तिः एवमेतानि चतुर्विंशतिः सूत्राणि । एवं निर्गन्थिकाया अपि चतुर्विंशतिः सूत्राणीति ॥ अथानालोचित एव कथमारा- मातप्रश्नः |धकः ? इत्याशङ्कामुत्तरं चाह-से केणढण'मित्यादि, 'तणसूयं वत्ति तृणाग्रं वा ' छिमाणे छिन्नेत्ति क्रियाकाल-| ॥३७६॥ निष्ठाकालयोरभेदेन प्रतिक्षणं कार्यस्थ निष्पत्तेः छिद्यमानं छिन्नमित्युच्यते, एवमसाबालोचनापरिणती सत्यापाराधना प्रवृत्त आराधक एवेति । 'अयं वत्ति 'अहत' नवं 'धोय'ति प्रक्षालित 'तंतुग्गयं ति तन्त्रोद्गतं तूरिवेमादेरुत्तीर्ण[४मात्र 'मंजिहादोणीए'त्ति मञ्जियारागभाजने ॥ आराधकश्च दीपबद्दीप्यत इति दीपस्वरूपं निरूपयवाह पईवस्स णं भंते ! झियायमाणस्स किं पदीवे झियाति लट्ठी झियाइ वत्ती झियाइ तल्ले झियाइ दीवचंपए लू |झियाइ जोति झियाइ ? गोयमा ! नो पदीये झियाइ जाव नो पदीवचंपए झियाइ जोड झियाइ ॥ अगारसणं भंते । तियायमाणस्स किं आगारे झियाह कुडा झियाइ कडणा झिधारणा शिवलहरणे हि वंसा-15 मला मि० बग्गा सिपाह छित्तरा झियाह छाणे झियाति जोति सियाति , गोयमा, नो अगारे सियाति नोट कुडा झियाति जाव नो छाणे झियाति जोति झियाति ।। (सूत्रं ३३५) जीवे णं भंते ! ओरालियसरीराओ कति किरिए, गोयमा सिय तिथिरिए सिय चउकिरिए सिय पंचकिरिए सिय अकिरिए। नेरइए णमंते । दीप अनुक्रम [४०७] ~ 757~
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy