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आगम
(०५)
"भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:)
शतक [८], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [४], मूलं [३२७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
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प्रत सूत्रांक [३२७]
BI एवं किरियापर्य'ति, 'एवम् एतेन क्रमेण क्रियापदं प्रज्ञापनाया द्वाविंशतितम, तश्चैत्र-काइया अहिगरणिया || All पाओसिया पारियावणिया पाणाइवायकिरिया' इत्यादि, अन्तिमं पुनरिदं सूत्रमत्र 'एयासि णं भंते ! आरंभियाण परि|| गहियाण अप्पचक्खाणियाणं मायावत्तियाण मिच्छादसणवत्तियाण य कयरेशहितो अप्पा वा बहया था तुला वा 18 विसेसाहिया था?, गोयमा । सपत्थोवा मिच्छादसणवत्तियाओ किरियाओ' मिथ्यादृशामेव तमावात, 'अप्पचक्याण-||४||
किरियाओ विसेसाहियाओ' मिथ्याशामविरतसम्यग्दृशां च तासां भावात् , 'परिग्गहियाओ विसेसाहियाओ' पूर्वोक्तानां देशविरतानां च तासां भावात् , 'आरंभियाओ किरियाओ विसेसाहियाओ' पूर्वोक्तानां प्रभत्तसंयतानां च तासां || भावात् , 'मायावत्तियाओ विसेसाहियाओ' पूर्वोक्तानामप्रमत्तसंयतानां च तदावादिति, एतदन्तं चेदं वाध्यमिति ||
दर्शयन्नाह-जावे'त्यादि, इह गाथे-"मिच्छापञ्चक्खाणे परिग्गहारंभमायकिरियाओ। कमसो मिपछा अविरयदेसपमत्त|प्पमत्ताण ॥१॥ मिच्छत्तवत्तियाओ मिच्छद्दिडीण चेव तो थोया । सेसाणं एक्केको यह रासी तभी अहिया ॥२॥"IPI इति ॥ [गतार्थे पूर्वोकेन] ॥ अष्टमशते चतुर्थोद्देशकः ॥ ८-४॥
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दीप
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अनुक्रम [४००]
क्रियाधिकारात्पश्चमोद्देशके परिग्रहादिक्रियाविषयं विचारं दर्शयन्नाहरायगिहे जाव एवं चयासी-आजीषिया णं भंते ! धेरे भगवंते एवं वयासी-समणोवासगस्स णं भंते ४ सामाइयकडस्स समणोवस्सए अच्छमाणस्स केइ भंडे अपहरेजा से णं भंते !तं भंडं अणुगवेसमाणे किं|
अत्र अष्टम-शतके चतुर्थ-उद्देशकः समाप्त: अथ अष्टम-शतके पंचम-उद्देशक: आरभ्यते
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