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________________ आगम (०५) "भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [८], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [२], मूलं [३१६] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: धिकार प्रत सूत्रांक [३१६]] दीप अनुक्रम [३८९] व्याख्या विच्छुयजातिआसीविसस्स णं भंते ! केवतिए विसए पन्नत्ते?, गोयमा ! पभू णं विच्छ्यजातिआसीविसे शतके प्रज्ञप्तिः र अद्धभरहप्पमाणमेत्तं बोदि विसेणं विसपरिगयं विसट्टमाणं पकरेत्तए, विसए से विसट्टयाए नो चेव णं संप-8 उद्देशार अभयदेवी- तीए करेंसु वा करेंति वा करिस्संति वार,मंडफजातिआसीविसपुच्छा, गोयमा! पभूणं मंडुकाजातिआसीविसे आशीविषायावृत्तिः१|| | भरहप्पमाणमेतं बोदिं विसेणं विसपरिगयं सेसं तं चेव जाव करेस्संति वा २, एवं उरगजातिआसीविस सू३१६ |स्सवि नवरं जंबुद्दीवप्पमाणमेत्तं बोंदि विसेणं विसपरिगयं सेसं तं चेव जाव करेस्संति वा ३, मणुस्सजाति॥३४॥ त आसीविसस्सवि एवं चेव नवरं समयखेत्तप्पमाणमेत्तं बॉदि विसेण विसपरिगयं सेसं तं चेव जाव करेस्संति वा ४। जइ कम्मआसीविसे किं नेरइयकम्मआसीविसे तिरिक्खजोणियकम्मआसीविसे मणुस्सकम्मआसी-12 विसे देवकम्मासीविसे?, गोयमा! नो नेरइयकम्मासीविसे तिरिक्खजोणियकम्मासीषिसेवि मणुस्सकम्मा देवकम्मासी०, जह तिरिक्खजोणियकम्मासीविसे किं एगिदियतिरिक्खजोणियकम्मासीविसे जाव पंचिंदियतिरिक्खजोणियकम्मासीविसे, गोयमा! नो एगिदियतिरिक्खजोणियकम्मासीविसे जाव नो चउरि-| दियतिरिक्खजोणियकम्मासीविसे पंचिंदियतिरिक्खजोणियकम्मासीविसे,जह पंचिंदियतिरिक्खजोणियजावकम्मासीविसे किं समुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणियजावकम्मासीविसे गन्भवतियपंचिंदियतिरिक्खजो- ॥३४॥ णियकम्मासीविसे, एवं जहा वेवियसरीरस्स भेदो जाव पज्जत्तासंखेजवासाउपगम्भवर्कतियपंचिदियति-| |रिक्खजोणियकम्मासीविसे नो अपज्जत्तासंखेजवासाउयजावकम्मासीविसे । जह मणुस्सकम्मासीविसे कि आशीविषस्य अधिकार: ~685~
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
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