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________________ आगम (०५) "भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [८], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [१], मूलं [३१०] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [३१०] ॐॐॐॐ+ | चूनां स्वाहारकवर्जशरीरचतुष्टयं भवतीतिकृत्वाऽऽह-नवर 'जे पजसे त्यादि । एवं गन्भवतियोवि अपराग तिटी बैंक्रियाहारकशरीराभावादू गर्भव्युत्क्रान्तिका अप्यपर्याप्तका मनुष्यात्रिशरीरा एवेत्यर्थः । 'जे अपवत्ता सुहमपुढवी-12 त्यादिरिन्द्रियविशेषणश्चतुर्थों दण्डकः ४॥'जे अपज्जत्ती सुहमपुढवी'त्यादिरौदारिकादिशरीरस्पर्शादीन्द्रियविशेषणः पञ्चमः ५॥ 'जे अपज्जत्ता सुष्टुमपुढवी त्यादि वर्णगन्धरसस्पर्शसंस्थानविशेषणः षष्ठः ६॥ एवमौदारिकादिशरीरवर्णादिमावविशेषणः सप्तमः ७॥ इन्द्रियवर्णादिविशेषणोऽष्टमः ८॥शरीरेन्द्रियवर्णादिविशेषणो नवम इति, अत एवाह-- एते नव दण्डकाः ॥ मीसापरिणया णं भैते ! पोग्गला कतिबिहा पण्णत्ता ?, गोयमा! पंचविहा पणत्ता, तंजहा-एगिदियमीसापरिणया जाव पंचिंदियमीसापरिणया एगिदियमीसांपरिणया णं भंते ! पोग्गला कतिविहा पण्णता?, गोयमा ! एवं जहा पओगपरिणएहिं नव दंडगा भणिया एवं मीसापरिणएहिवि नव दंडगा भाणियबा, तहेव सर्व निरवसेस, नवरं अभिलावो मीसापरिणया भाणियचं, सेसं तं चेच, जाव जे पजत्ता सबट्ठसिद्धअणुत्तर जाव आययसंठाणपरिणयावि ॥ (सूत्रं ३११)॥ वीससापरिणया भंते ! पोग्गला कतिविहा पन्नत्ता ?, गोयमा ! पंचविहा पन्नत्ता, तंजहा-बन्नपरिणया गंधपरिणया रसपरिणया फासपरिणया संठाणपरिणया, जे | वनपरिणया ते पंचविहा पन्नत्ता, तंजहा-कालवनपरिणया जाव सुकिल्लवनपरिणया, जे गंधपरिणया ते &| दुविहा पन्नत्ता, तंजहा-सुम्भिगंधपरिणयावि दुन्भिगंधपरिणयावि, एवं जहा पन्नवणापदे तेहेव निरवसैसं दीप अनुक्रम [३८३] SAREarattin international ~668~
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
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