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आगम (०५)
"भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं वृत्ति:) शतक [७], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [८], मूलं [२९३-२९४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
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प्रत सूत्रांक [२९३-२९४]
दीप
छउमत्थे णं भंते ! मणूसे तीयमणंतं सासयं समयं केवलेणं संजमेणं एवं जहा पढमसए चउत्थे उद्देसए तहा भाणियचं जाव अलमत्थु ।। (सूत्र २९३ ) ॥ से गूणं भंते! हथिस्स य कुंथुस्स य समे चेव जीवे ?, लाता गोयमा । हस्थिस्स कुंथुस्स य, एवं जहा रायप्पसेणइज्जे जाव खुड्डियं वा महालियं वा से तेणद्वेर्ण गोय-| माजाव समे चेव जीवे (सूत्रं २९४)।
छउमत्थे णमित्यादि, एतच यथा प्राग् व्याख्यातं तथा द्रष्टव्यम् ॥ अथ जीवाधिकारादिदमाह-से णूण'मित्या-18 दि, 'एवं जहा रापप्पसेणइज्जेत्ति, तत्र चैतत्सूत्रमेव-समे चेव जीवे, से गूणं भंते । हत्थीओ कुंथू अप्पकम्मतराए चेव अप्पकिरियतराए चेव अप्पासवतराए चेव कुंथुओ हत्थी महाकम्मतराए व ४१, हंता गोयमा ! । कम्हा थे भते । हत्थिस्स य कुंथुस्स य समे चेव जीवे ?, गोयमा से जहानामए-कूडागारसाला सिया दुहओ लित्ता गुत्ता गुसदुवारा निवाया निवायगंभीरा अहे णं केई पुरिसे पईवं च जोई च गहाय तं कूडागारसालं अंतो २ अणुपविसेइ २ तीसे कूडा
गारसालाप सबओ समंता घणनिचियनिरन्तरनिच्छिड्डाई दुवारवयणाई पिहेति तीसे व बहुमझदेसभाए तं पईवं पलीजावेजा, से य पईवे कूडागारसालं अंतो २ ओभासति उज्जोएइ तवइ पभासेह नो चेव णं कूडागारसालाए बाहि, तए णं 5 से पुरिसे तं पईवं इहरेणं पिहेइ, तए ण से पईवे इडुरस्स अंतो २ ओभासेइनो चेवणं रस्स बाहि, एवं गोकिल-II ||जएणं गंडवाणियाए पच्छिपिडएणं आढएर्ण अद्धाढएणं पत्थएणं अद्धपत्थएणं कुलवेणे अखकुलवेणं चउम्भाइयाएका अभाइयाए सोलसियाए बचीसियाए चउसद्धियाए, तए णं से पुरिसे तं पईवं दीवगपणपणे पिहे, तए णं से पईवे
अनुक्रम [३६५-३६६]
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