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आगम
(०५)
प्रत
सूत्रांक
[२६५ ]
दीप
अनुक्रम [३३३]
“भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं + वृत्तिः )
शतक [७], वर्ग [-] अंतर् शतक [-] उद्देशक [१], मूलं [ २६५] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र - [ ०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः
आणुपुवीए परिकम्मेमाणे २ दम्भेहि य कुसेहि य वेढेह २ अट्ठहिं महियाले बेहिं लिंप २ उण्हे दलयति भूर्ति २ सुकं समाणं अत्थाहमतारमपोरसियंसि उदगंसि पक्खिवेजा, से नूणं गोयमा से तुंबे तेसिं अट्ठण्हं मट्टियालेवेणं गुरुपत्ताए भारियताए गुरुसंभारियत्ताए सलिलतलमतिवहत्ता अहे घर | णितलपट्टाणे भवइ ?, हंता भवइ, अहे णं से तुंबे अट्ठण्हं महियालेवेणं परिवखएणं धरणितलमतिवत्ता उप्पि सलिलतल पट्ठाणे भवइ ?, हंता भवइ, एवं खलु गोयमा ! निस्संगयाए निरंगणयाए गइपरिणामेणं अकम्मरस गई पन्नायति । कहन्नं भंते! बंधण छेदणयाए अकम्मस्स गई पन्नता ? गोयमा ! से जहा| नामए-कलसिंवलियाइ वा मुग्गसिंबलियाइ वा माससिंवलियाइ वा सिंगलिसिंगलिया वा एरंडमिंजियाइ वा उण्हे दिन्ना सुका समाणी फुडित्ता णं एगंतमंतं गच्छ एवं खलु गोयमा १० | कहन्नं भंते ! निरंधणयाए अक्रम्मस्स गती ?, गोयमा । से जहानामए - धूमस्स इंधणविप्पमुकस्स उहूं वीससाए निवाघापणं, गती पवत्तति, एवं खलु गोयमा • कहनं भंते ! पुवप्पओगेणं अकम्मस्स गती पन्नता ?, गोयमा से हानामए- कंडस्स कोदंडविप्पमुकस्स लक्खाभिमुही निदाघाएणं गती पवत्तइ, एवं खलु गोयमा ! नीसंगयाए निरंगणयाए जाव पुढप्पओगेणं अकम्मस्स गती पण्णत्ता ॥ ( सू २६५ ) ॥
'गई पण्णाय'त्ति गतिःप्रज्ञायते अभ्युपगम्यते इतियावत्' निस्संगयाए 'त्ति 'निःसङ्गतया' कर्म्ममलापगमेन' निरंगणयाएत्ति नीरागतथा मोहापगमेन 'गतिपरिणामेणं' ति गतिस्वभावतयाऽलावुद्रव्यस्येव 'बंधणच्छेयणयाए 'ति कर्म्मबन्धनछेद
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