SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 571
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम (०५) "भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [६], वर्ग [-1, अंतर्-शतक [-], उद्देशक [९], मूलं [२५२] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [२५२] दीप अनुक्रम [३१७] 54O5CACANCY | सूक्ष्मसम्परायावस्थायां मोहायुषोरबन्धकत्वात् । 'बंधुदेसो इत्यादि, बन्धोद्देशक: प्रज्ञापनायाः सम्बन्धी चतुर्विंशति-10 ४॥ तमपदात्मकोऽत्र स्थाने 'नेतव्यः' अध्येतव्यः, स चायम्-'नेरइए णं भंते ! णाणावरणिज कम्मं बंधमाणे कइ कम्मपग-18I &डीओ बंधइ १, गोयमा ! अविहबंधगे या सत्तविहवंधगे वा एवं जाव वेमाणिए, नवरं मणुस्से जहा जीवे'इत्यादि । जीवाधिकाराद्देवजीवमधिकृत्याह देवे णं भंते ! महिडीए जाव महाणुभाए बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता पभू एगवन्नं एगरूवं विउवि-18 त्तिए?, गोयमा ! नो तिण? । देवे णं भंते ! बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता पभू, हंता पभू, से णं भंते ! किं इहगए पोग्गले परियाइत्ता विउष्पति तत्थगए पोग्गले परियाइत्ता विकुचति अन्नत्थगए पोग्गले परियाइत्ता ४ विउधति , गोयमा नो इहगए पोग्गले परियाइत्ता विउचति, तस्थगए पोग्गले परियाइत्ता विकुवति, नो अन्नत्थगए पोग्गले परियाइत्ता विउधति, एवं एएणं गमेणं जाव एगवन्नं एगरूवं १ एगवणं अणेगरूवं २ |अणेगवन्नं एगरूवं ३ अणेगवन्नं अणेगरूवं ४ चउभंगो । देवे भंते ! महिहीए जाव महाणुभागे बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता पभू कालयं पोग्गलं नीलगपोग्गलत्ताए | परिणामेत्तए नीलगं पोग्गलं वा कालगपोग्गलत्ताए परिणामेत्तए ?, गोयमानो तिणढे समढे, परियाइत्ता पभू । से णं भंते ! किं इहगए , |पोग्गले तं चैव नवरं परिणामेतित्ति भाणियचं, एवं कालगपोग्गलं | गंधनो पर्शना ~570~
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy