________________
आगम (०५)
"भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [६], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [७], मूलं [२४७-२४८] + गाथा: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [२४७-२४८]
यसमितिसमागमेणं सा एगा आवलियत्ति पवुच्चइ, संखेज्जा आवलिया ऊसासो संखेजा आवलिया नि|स्सासो-हट्ठस्स अणवगल्लस्स, निरुवकिट्ठस्स जंतुणो । एगे असासनीसासे, एस पाणुत्ति बुञ्चति ॥१॥ सत्त पाणूणि से थोचे, सत्त थोचाई से लवे । लवाणं सत्तहत्तरिए, एस मुहुत्ते वियाहिए ॥२॥ तिन्नि सहस्सा सत्त य सयाई तेवत्तरि च ऊसासा । एस मुहुत्तो दिट्ठो सोहि अणतनाणीहिं ॥ ३ ॥ एएणं मुहुत्तपमाणणं तीसमुहुत्तो अहोरत्तो, पन्नरस अहोरत्ता पक्खो दो पक्खा मासे दो मासा उऊ तिन्नि उउए अयणे दो अयणे संवच्छरे पंचसंवच्छरिए जुगे वीसं जुगाई वाससयं दस वाससयाई वाससहस्सं सयं वाससहस्साई|| वाससयसहस्सं चउरासीति चाससयसहस्साणि से एगे पुवंगे चउरासीती पुर्वगसयसहस्साई से एगे पुत्वे, [एवं पूल्वे ] २ तुडिए २ अडडे २ अवये २ हहए २ उप्पले २ पउमे २ नलिणे २ अच्छणिउरे २ अउए २ पउए
य२ नउए य २ चूलिया २ सीसपहेलिया २ एताव ताव गणिए एताव ताव गणियस्स विसए, तेण परं ४ ओवमिए । से कितं ओवमिए?, २ दुविहे पण्णत्ते तंजहा पलिओवमे य सागरोवमे य, से किं तं पलिओवमे
से कितं सागरोवमे॥ सत्येण मुतिक्खणवि छेनुं भेत्तुं च जं किर न सका । तं परमाणु सिद्धा वयंति
आदि पमाणाणं ॥१॥ अर्णताणं परमाणुपोग्गलाणं समुदयसमितिसमागमेणं सा एगा उस्सहसण्हियापूति वा सहसण्हियाति वा उहुरेणूति वा तसरेणूति वा रहरेणूति वा बालग्गेइ वा लिक्खाति था जूयाति |
वा जवमझेति वा अंगुलेति वा, अट्ठ उस्सण्हसण्हियाओ सा एगा सपहसण्हिया अट्ठ सहसण्डियाओ
गाथा:
दीप अनुक्रम [३०३
-३१२]]
काळ-स्वरूपं एवं समु-गणितं
~554~