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________________ आगम (०५) "भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [६], वर्ग [-1, अंतर्-शतक [-], उद्देशक [५], मूलं [२४२] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [२४२] दीप अनुक्रम [२९२-२९४]] I केरिसियाओ धनेणं पन्नत्ताओ?, गोयमा! कालाओ जाब विप्पामेव वीतीवएज्जा । कण्हरातीओ णं भंते ! कति |नामधेजा पण्णता? गोयमा! अट्ठनामधेजा पण्णत्ता, तंजहा-कण्हरातित्ति वा मेहरातीति वा मघावती()तिया माघवतीति वा वायफलिहेति वा वायपलिक्खोभेइ वा देवफलिहेड या देवपलिक्खोभेति वा । कण्हरातीओ ॥ण भंते !किं पुढविपरिणामाओ आउपरिणामाओजीवपरिणामाओ पुग्गलपरिणामाओ ?, गोयमा ! पुढवीपरि-19 |णामाओ नो आउपरिणामाओजीवपरिणामाओवि पुग्गलपरिणामाओ |वि। कण्हरातीसुण भंते ! सवे पाणा भूया जीवा सत्ता उववन्नपुवा ?, पूर्वी | हंतागोयमा! असईअदुवा अर्णतखुत्तो नो चेव णं बादर आउकाइयत्साए पादरअगणिकाइयत्ताए वा बादरवणप्फतिकाइयत्ताए या (सूत्रं २४२) आर्चिमीलि N5 ___ 'कपहराईओ'त्ति कृष्णवर्णपुनलरेखाः 'हर्ष'ति समं किलेति वृत्तिकारः & प्राह 'अक्खाडगे'त्यादि, इहआखाटकः-प्रेक्षास्थाने आसनविशेषलक्षणस्तत्सं स्थिताः, स्थापना चेयम्-'नो असुरों' इत्यादि, असुरनागकुमाराणां तत्र गमनासम्भवादिति ॥ 'कण्हराइति वत्ति पूर्ववत्, मेघराजीति वा काल धसूराम मेघरेखातुल्यत्वात, मति वा तमिश्रतया षष्ठनारकपृथवीतुल्यत्वात्, माघवतीति वा तमिश्रतयैव सप्तमनरकपृथिवीतुल्यत्वात्, 'वायफलिहेइ ASHRS506-06 CHOREOGRAM A दमप्रतिष्ठान श्वेरोचन Ureena ५चन्द्राभ दधिश ITDHRS KARunmurary.com कृष्णराजी-स्वरूपं ~546~
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
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