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आगम
(०५)
"भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:)
शतक [६], वर्ग [-1, अंतर्-शतक [-], उद्देशक [3], मूलं [२३६] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
६ शतके
| उद्देशः३
स्थितिः
प्रत सूत्रांक [२३६]]
सू २३६
व्याख्या- धाकालवर्जितः कर्मनिषेककालो भवति, एवमन्यकर्मस्वप्यबाधाकालो व्याख्येयो, नवरमायुषि त्रयस्त्रिंशत्सागरोपमाणि
प्रज्ञप्तिः निषेका, पूर्वकोटीत्रिभागश्चाबाधाकाल इति । 'वेयणिजं जहन्नेणं दो समय'त्ति केवलयोगप्रत्ययवधापेक्षया वेदनीय अभयदेवी-| द्विसमयस्थितिकं भवति, एकत्र बध्यते द्वितीये वेद्यते, यच्चोच्यते 'बेयणियस्स जहन्ना वारस नामगोयाण अह(उ)मुहुत्त'
त्तिटू या वृत्तिः१
तत्सकषायस्थितिबन्धमाश्रित्येति वेदितव्यमिति ॥ ॥२५७॥ नाणावरणिज्जे णं भंते ! कम्मं किं इत्थी बंधइ पुरिसो बंधइ नपुंसओ बंधइ ? णोइत्थी नोपुरिसो नोनपुं
सओ बंधह, गोयमा ! इत्थीवि बंधद पुरिसोवि बंधइ नपुंसओवि बंधइ नोइत्थी नोपुरिसो नोनपुंसओ सिय बंधइ सिय नो बंधइ एवं आउगवजाओ सत्स कम्मप्पगडीओ॥ आउगे भंते ! कम्मं किं इत्थी बंधा | पुरिसो बंधा नपुंसओ बंधह? पुच्छा, गोयमा ! इत्थी सिय बंधहसिय नो बंधह, एवं तिन्निवि भाणियचा, || 2 नोइत्थी नोपुरिसो नोनपुंसओ न बंध ॥णाणावरणिजणं भंते ! कम्मं किं संजए बंधह असंजए एवं संजयासंजए बंधह नोसंजयनोअसंजएनोसंजयासंजए बंधति !, गोयमा। संजए सिय बंधति सिय नो
बंधति असंजए बंघद संजयासंजएवि बंधइ नोसंजएनोअसंजएनोसंजयासंजए न बंधति, एवं आउगवजाओ लसत्तवि, आउगे हेडिल्ला तिन्नि भयणाए उवरिल्ले ण बंधइ ।। णाणावरणिज्नं णं भंते ! कम्मं किं सम्मदिट्टी
बंधद मिच्छद्दिट्टी बंधइ सम्मामिच्छदिट्ठी बंधद, गोयमा ! सम्मदिट्टी सिय बंधइ सिय नो बंधा मिच्छविट्ठी आबंधइ सम्मामिच्छदिट्ठी बंधह, एवं आउगवजाओ सत्तवि, आऊए हेडिल्ला दो भयणाए सम्मामिच्छविही|
दीप
अनुक्रम [२८३]
||२५७॥
ज्ञानावरणियादिः कर्मन: बंधका:
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