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आगम
(०५)
"भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:)
शतक [१], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [७], मूलं [२१९] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
| ५ शतके
प्रत सूत्रांक [२१९]
या वृत्तिः
दीप अनुक्रम [२६०]
व्याख्या- चित्तमीसयाई दवाई परि० भ०, से तेणद्वेणं तं चेव । असुरकुमारा णं भंते ! किं सारंभा ४१ पुच्छा, गोयमा! प्रज्ञप्तिः असुरकुमारा सारंभा सपरिग्गहा नो अणारंभा अप० । से केणटेणं०१, गोयमा! असुरकुमारा णं पुढविकायं | उद्देश अभयदेवी समारंभंति जाव तसकार्यसमारंभंति सरीरा परिग्गहिया भवंति कम्मा परिग्गहिया भवंति भवणा परि० भवंति नारकादीदेवा देवीओ मणुस्सा मणुस्सीओ तिरिक्खजोणिया तिरिक्खजोणिणीओ परिग्गहियाओ भवंति आसणसय
त्वादि ॥२३७॥ णभंडमत्तोवगरणा परिग्गहिया भवंति सचित्ताचित्तमीसयाई व्याई परिग्गहियाई भवंति से तेणडेणं तहेव ||
एवं जाव थणियकुमारा। एगिदिया जहा नेरइया।बेइंदियाणं भंते। किंसारंभा सपरिग्गहा तंव जाव सरीरा परिग्गहिया भवंति वाहिरिया भंडमत्तोवगरणा परि० भवंति सचित्ताचित्त० जाव भवंति एवं जाव चउरिदिया। पंचेंदियतिरिक्खजोणिया णं भंते ! तं चेव जाव कम्मा परिभवन्ति टंका कूडा सेला सिहरी पम्भारा परिग्ग|हिया भवंति जलथलबिलगुहालेणा परिग्गहिया भवंति उज्झरनिज्झरचिल्ललपल्ललवप्पिणा परिग्गहिया भवंति
अगडतडागदहनदीओ वाविपुक्खरिणीदीहिया गुजालिया सरा सरपंतियाओ सरसरपंतियाओ विलपंतीहै याओ परिग्गहियाओ भवंति आरामुजाणा काणणा वणाई वणसंडाई वणराईओ परिग्गहियाओ भवन्ति देव-18 उलसभापवाथूभाखातियपरिखाओ परिग्गहियाओ भवंति पागारहालगचरियदारगोपुरा परिग्गहिया भवंति
IR३७|| | पासादधरसरणलेणआवणा परिग्गहिता भवंति सिंघाडगतिगचउक्कचञ्चरचउम्मुहमहापहा परिग्गहिया भवंति सगडरहजाणजुग्गगिल्लिथिल्लिसीयसंदमाणियाओपरिग्गहियाओ भवंति लोहीलोहकटाहकडच्छुया परिग्गहिया
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