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आगम
(०५)
"भगवती'- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति
शतक [१], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [६], मूलं [२०५] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती"मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
व्याख्या-मा
प्रत सूत्रांक [२०५]]
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सू२०७
दीप अनुक्रम [२४५]
|| प्रथमसूत्रसममिदं चतुर्थमित्येतदनुसारेण च सूत्रपुस्तकाक्षराण्यनुगन्तव्यानि ॥ क्रियाऽधिकारादिदमाह-'अगणी त्यादि, ५ शतके प्रज्ञप्तिः 'अष्टुणोजलिए'त्ति 'अधुनोज्वलितः' सद्यःप्रदीप्तः 'महाकम्मतराए'त्ति विध्यायमानानलापेक्षयाऽतिशयेन महान्ति
उद्देशः ६ अभयदेवी-कर्माणि-ज्ञानावरणादीनि बन्धमाश्रित्य यस्यासौ महाकर्मतरः, एवमन्यान्यपि, नवरं क्रिया-दाहरूपा आश्रयो-नवकों
धनुरादीनां या वृत्तिःशधापादानहेतुः वेदना-पीडा भाविनि तत्कर्मजन्या परस्परशरीरसंबाधजन्या वा 'चोकसिजमाणे'त्ति 'व्यवकृष्यमाणः' अप
| क्रियावत्वं ॥२२९॥
कर्ष गच्छन् 'अप्पकम्मतराए'त्ति अङ्गाराद्यवस्थामाश्नित्य, अल्पशब्दः स्तोकार्थः, [क्षारावस्थायां त्वभावार्थः ] ॥ क्रिया
अधिकारादेवेदमाहMI पुरिसेणं भंते धणु परामुसइ धणुं परामुसित्ता उसुपरामुसइ २ ठाणं ठाइ ठाणं ठिचा आयतकण्णाययं उसुम
करेंति आययकन्नाययं उसुं करेत्ता उहं वेहासं उसुंउब्विहइ २ ततोणं से उसु उर्दु वेहासं उचिहिए समाणे जाई तत्थ || पाणाई भूयाई जीवाई सत्ताई अभिहणइ वत्तेति लेस्सेति संघाएइ संघति परितावेई किलामेइ ठाणाओ|| ठाणं संकामेह जीवियाओ ववरोवेह तए णं भंते ! से पुरिसे कतिकिरिए ?, गोयमा ! जावं चणं से पुरिसे| ४ घणु परामुसइ २ जाव उब्विहइ तावं च णं से पुरिसे कातियाएजाव पाणातिवायकिरियाए पंचहि किरियाहि लापट्टे, जेसिपि य णं जीवाणं सरीरेहिं धणू निव्वत्तिए तेऽवि य णं जीवा काइयाए जाच पंचहि किरियाहि | पुढे, एवं धणुपुढे पंचहि किरियाहि, जीवा पंचहिं, हारू पंचर्हि, उसू पंचहिं, सरे पत्तणे फले पहारू पंचहि,
| ॥२२९॥ xn(सूर्य २०६)॥ अहे गं से उसुं अपणो गुरुयत्साए भारियत्ताए गुरुसंभारियत्ताए अहे बीससाए पची-1
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