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________________ आगम (०५) प्रत सूत्रांक [१९२ -१९७] दीप अनुक्रम [२३२ -२३७] “भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं + वृत्ति:) शतक [५], वर्ग [-], अंतर् शतक [-], उद्देशक [४], मूलं [१९२-१९७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः | तंजहा-माइमिच्छादिविवन्नगा य अमाइसम्मदिट्टिउववन्नया य, तत्थ णं जे ते माइमिच्छादिट्ठीउववनगा ते न याति न पासंति, तत्थ णं जे ते अमाईसम्मदिट्ठीउववन्नगा ते णं जाणंति पासंति, से केणद्वेणं एवं बु० अमाईसम्मदिट्ठी जाव पा० ?, गोयमा ! अमाई सम्मदिट्ठी दुविहा पण्णत्ता - अनंतशेववन्नगा य परंपरोववन्नगा य, तत्थ अनंतरोवबन्नगा न जा० परंपरोववन्नगा जाणंति, से केणट्टेणं भंते ! एवं० परंपरोवचनगा जाव जाणंति ?, गोयमा ! परंपरोववन्नगा दुबिहा पण्णत्ता-पजत्तगा य अपजतगा य, पत्ता जा० अपज्जन्त्ता न जा०, एवं अनंतर परंपरपनन्तअपज्जत्ता य उवउत्ता अणुउवत्ता, तत्थ णं जे ते जवउत्ता ते जा० |पा से तेणद्वेणं तं चैव । (सूत्रं १९५) पभू णं भंते! अणुत्तरोववाइया देवा तत्थगया चैव समाणा इहगएणं केवलिणा सद्धिं आलावं वा संलावं वा करेत्तए ?, हंता पभू, से केणद्वेणं जाव पभू णं अणुत्तरोववाइया | देवा जाव करेत्तए ?, गोयमा ! जपणं अणुत्तरोववाइया देवा तत्थगया चैव समाणा अङ्कं वा हेउं वा पसिणं वा वागरणं वा कारणं वा पुच्छंति तए णं इहगए केवली अहं वा जाव वागरणं वा वागरेति से तेणट्टेणं । जन्न भंते ! इहगए चेव केवली अहं वा जाव वागरेति तष्णं अणुत्तरोववाइया देवा तत्थगया चैव समाणा जा० पा० ?, हंता ! जाणंति पासंति, से केणद्वेणं जाव पासंति ?, गोयमा ! तेसिणं देवाणं अनंताओ मणोदव्ववग्गणाओ लद्वाओ पत्ताओ अभिसमन्नागयाओ भवंति से तेणट्टेणं जवणं इहगए केवली जाव पा० ॥ Eucation International For Pass Use Only ~448~
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
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