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आगम
(०५)
"भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति
शतक [१], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [३], मूलं [१८३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती"मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [१८३]]
दीप अनुक्रम [२२३]
व्याख्या-1 भारिपत्ताए अण्णमण्णघडत्ताए जाव चिटुंति, एवामेव बहणं जीवाणं बहसु आजातिसयसहस्सेसु बडई ५ शतक
प्रज्ञप्तिः | आउयसहस्साई आणुपुधिगढियाई जाव चिट्ठति, एगेऽविय णं जीवे एगेर्ण समएणं दो आउयाई पडिसंवे-|| अभयदेवी- दयति, तंजहा-इहभवियाउयं च परभवियाउयं च, जं समयं इहभवियाउयं पडिसंवेदेव तं समयं परभ-द या वृत्तिः
वियाउयं पडिसंवेदेह जाव से कहमेयं भंते ! एवं', गोयमा ! जन्नं ते अन्नउत्थिया तं चेव जाव परभविया॥२१॥ उयं च, जे ते एवमाहसु तं मिच्छा, अहं पुण गोयमा । एवमातिक्खामि जाव परूवेमि अन्नमनघडताए
चिट्ठति, एवामेव एगमेगस्स जीवस्स बहहिं आजातिसहस्सेहिं बहूई आउयसहस्साई आणुपुलिंगतिPथाई जाब चिटुंति, एगेऽविय णं जीवे एगेण समएणं एगं आउयं पडिसंवेदेइ, तंजहा-इहभवियाज्यं वा || परभवियाउयं वा, जं समयं इहभवियाउयं पडिसंवेदेइ नो तं. समय पर पडिसंवेदेति जं समयं प० नोतं ||
समयं इहभवियाउयं प०, इहभवियाउयस्स पडिसंवेषणाए नो परभवियाउयं पडिसंवेदेइ परभवियाउयस्स पडिसंवेयणाए नो इहभवियाउयं पडिसंवेदेति, एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं एणं आउयं प० तंजहाइहभ० वा परभ० वा ॥ (सूत्रं १८३)॥ _ 'अन्नउत्थिया ण'मित्यादि, 'जालगंठियत्ति जालं-मत्स्य बन्धनं तस्येव प्रन्थयो यस्यां सा जालग्रन्थिका-जालिका, द||
२१४॥ किस्वरूपा सा ? इत्याह-आणुपुध्विगढिय'त्ति आनुपूर्ता-परिपाट्या प्रथिता-गुम्फिता आधुचितग्रन्थीनामादौ | विधानाद् अन्तोचितानां क्रमेणान्त एव करणात्, एतदेव प्रपञ्चयन्नाह-'अनंतरगढिय'त्ति प्रथमग्रन्थीनामनन्तरं व्यव-11
Re- RAHA
एक-आयु: वेदनं
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