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आगम
(०५)
"भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:)
शतक [३], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [७], मूलं [१६५] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [१६५]
दीप अनुक्रम [१९४]
व्याख्या- गहावसब्वाइ वा अम्भाति वा अम्भरुक्खाति वा संज्झाइ वा गंधवनगराति या उकापायाति वा दिसी-12 शतके प्रज्ञप्तिः दाहाति वा गजियाति वा विजयाति वा पंसुवुद्वीति वा जूवेत्ति वा जक्खालित्तत्ति वा धूमियाइ वा महि-18 उद्देशः७ अभयदेवी याइ वा रयुग्घायाइ वा चंदोवरागाति वा सूरोवरागाति वा चंदपरिवेसाति वा सूरपरिवेसाति वा पडि
शक्रस्यसोया वृत्तिः१|
| चंदाइ वा पडिसूराति वा इंधणूति वा उदगमच्छकपिहसियअमोहापाईणवायाति वा पडीणवाताति वा मोलकिपा॥१९५॥ जाव संवयवाताति वा गामदाहाइ वा जाव सन्निवेसदाहाति वा पाणक्खया जणक्खया धणक्खया कुल-18
ला-सू१६५ क्खया वसणभूया अणारिया जे यावन्ने तहप्पगारा ण ते सकस्स देविंदस्स देवरनो सोमस्स महारस्रो अण्णाया अदिट्ठा असुया अमुया अविषणाया तेर्सि वा सोमकाइयाणं देवाणं, सकस्स णं देविंदस्स देवरन्नो सोमस्स महारन्नो इमे आहावचा अभिन्नाया होत्या, तंजहा-इंगालए वियालए लोहियक्खे सणिचरे चंदे सूरे |सुके बुहे वहस्सती राहू ॥ सकस्स णं देविंदस्स देवरन्नो सोमस्स महारनो सत्तिभागं पलिओवर्म ठिती| |पण्णत्ता, अहावञ्चाभिन्नायाणं देवाणं एर्ग पलिओवमं ठिई पण्णत्ता, एवंमहिहीए जाव महाणुभागे सोमे | महाराया (सूत्रं १६५)१॥ 'रायगिहे'इत्यादि, 'बहूई जोयणाई' इह यावत्करणादिदं दृश्यम्-'बहूई जोयणसयाई बहूई जोयणसहस्साई बहूई
॥१९५॥ |जोयणसयसहस्साई बहूओ जोयणकोडीओ बरओ जोयणकोडाकोडीओ उहुं दूरं धीइवइत्ता एत्थ सोहम्मे णाम कप्पे || |पण्णत्ते पाईणपडीणायए उदीणदाहिणविरिछन्ने अद्धचंदसंठाणसंठिए अश्चिमालिभासरासिवन्नाहे असंखेज्जाओ जोयण
सोम-लोकपालस्य वर्णनं
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