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________________ आगम (०५) "भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [३], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [१], मूलं [१२७-१२९] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [१२७-१२९] +LAL+SANSACCUk सगाणं चउण्हं लोगपालाणं छह अग्गमहिसीणं सपरिवाराणं तिण्हं परिसाणं सत्तण्हं अणियाणं सत्तण्हं अणियाहिबईणं चउत्तीसाए आयरक्खदेवसाहस्सीणं अन्नेसिं च जाव विहरह, एवतियं च णं पभू विउवित्तए से जहानामए-जुवर्ति जुवाणे जाव पभू केवलकप्पं जंबूद्दीवं २ जाव तिरियं संखेज्जे दीवसमुद्दे बहहिं नागकुमा रीहिं जाव विउविस्संति वा, सामाणिया तायत्तीसलोगपालगा महिसीओ य तहेव,जहा चमरस्स एवं धरणे जाणं नागकुमारराया महिहिए जाव एवतियं जहा चमरे तहा धरणेणवि, नवरं संखेने दीवसमुद्दे भाणियब्वं, ४॥ एवं जाव धणियकुमारा वाणमंतरा जोइसियावि, नवरं दाहिणिल्ले सब्वे अग्गिभूती पुच्छति, उत्तरिल्ले सब्वे वाउभूती पुच्छह, भंतेत्ति भगवं दोचे गोयमे अग्गिभूती अणगारे समणं भगवंम वंदति नमसति २एवं वयासी-जति भंते ! जोइसिंदे जोतिसराया एवंमहिड्डीए जाव एवतियं च णं पभू विकुवित्तए सकेणं || भंते ! देविंदे देवराया केमहिहीए जाव केवतियं च णं पभू विउब्यित्तए ?, गोपमा! सके ण देविदे देवराया महिहीए जाव महाणुभागे, से णं तत्थ पत्तीसाए विमाणावाससपसहस्साणं चउरासीए सामाणिपसाह-I जास्सीणं जाव चउण्डं चउरासीणं आयरक्ख(देव)साहस्सीणं अन्नेसि च जाव विहरह, एवंमहिडीए जाव एवतियं चणं पभू विकुवित्तए, एवं जहेव चमरस्स तहेव भाणियध्वं, नवरं दो केवलकप्पे जंजूरीचे २ अवसेसं तं चेव, एस गं गोयमा ! सकस्स देविंदस्स देवरपणो इमेयारूवे विसए विसयमेसे गं बुइए नो चेव णं संपत्तीए विउविसु वा विउच्चति वा विउव्विस्सति वा (मु०१२९) । SHRIESANSAR दीप अनुक्रम [१५३-१५५]] वायुभूति-अनागारकृत् प्रश्न: ~318~
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
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