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________________ आगम (०५) "भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [२], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [१], मूलं [८६-८९] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [८६-८९] दीप अनुक्रम [१०८ गोयमा ! याउयायस्स णं चत्तारि सरीरया पन्नत्ता, तंजहा-ओरालिए वेउब्बिए तेयए कम्मए, ओरालिय- २ शतके प्रज्ञप्तिः घेउब्बियाई विपजहाय तेयकम्मएहिं निक्खमति, से तेणड्डेणं गोयमा ! एवं चुदइ-सिय ससरीरी सिय उद्देशः१ अभयदेवी-1 असरीरी निक्खमह ।। (सू०८६)॥ माईण भंते नियंठे नो निरुद्धभवे नो निरुद्धभवपवंचे णो पहीणसं-8 वायुकाय या वृत्तिः१ सारे णो पहीणसंसारवेयणिज्जे णो वोच्छिण्णसंसारे णो वोच्छिण्णसंसारवेयणिज्जे नो निहियढे नो निहि- कायस्थान कास्८६मृता सायट्ठकरणिजे पुणरवि इत्थतं हव्वमागच्छति ?, हंता गोयमा ! मडाई णं नियंठे जाव पुणरवि इत्थतं हच्च चारदिनइत्थंता मागच्छद ॥ (सू०८७)॥ से णं भंते ! किं वत्तव्वं सिया? गोयमा ! पाणेति बत्तब्वं सिया भूतेति वत्तव्वं 31 व सू८७प्रसिया जीवेत्ति वत्तव्वं सत्तेत्ति वत्तव्यं विनृत्ति वत्तव्वं वेदेति वत्तवं सिया पाणे भूए जीवे सत्ते विनूदाण्यादिताडएति वत्तव्वं सिया, से केणडेणं भंते ! पाणेत्ति वत्तव्बं सिया जाव वेदेति वत्तव्वं सिया?, गोपमा ! जम्हा नित्थता आ० पा० उ० नी० तम्हा पाणेत्ति वत्तव्वं सिया, जम्हा भूते भवति भविस्सति य तम्हा भूपत्ति वत्तव्य ||४|सू८८-८९ लासिया, जम्हा जीवे जीवइ जीवत्तं आउयं च कम्मं उबजीवइ तम्हा जीवेत्ति वित्तब्वं सिया, जम्हा सत्ते सुहासुहेहिं कम्मेहिं तम्हा सत्तेत्ति वत्तब्वं सिया, जम्हा तित्तकडयकसायअंथिलमहुरे रसे जाणइ तम्हा वित्ति वत्तवं सिया, वेदेह य सुहदुक्खं तम्हा वेदेति वत्तव्वं सिया, से तेणद्वेणं जाव पाणेत्ति वत्तब्वं सिया ॥११॥ ताजाव वेदेति वत्तवं सिया ॥ (सू०८८)॥ मडाई णं भंते ! नियंठे निरुद्धभवे निरुद्धभवपचे जाव निहियडकरMणिज्जे णो पुणरवि इत्थत्तं हव्वमागच्छति', हंता गोयमा मडाई णं नियंठे जाव नो पुणरवि इस्थत्तं हवमाग-19 -१११] ~ 225~
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
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