SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1957
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम (०५) "भगवती'- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [४१], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [१-१९६], मूलं [८६७-८६८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: व्याख्या- उवजीवंति आयअजसंपि उवजीवंति, जइ आयजसं उवजीवंति किं सलेस्सा अलेस्सा ?, गोयमा। |४|४१ शतके प्रज्ञप्तिःसलेस्साथि अलेस्सावि, जई अलेस्सा किं सकिरिया अकिरिया, गोयमा! नो सकिरिया अकि-IRTHER अभयदेवी-||रिया, जइ अकिरिया तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झति जाच अंतं करेंति?, हेता सिझंति जाव अंतं करेन्ति.॥४ या वृत्तिः जइ सलेस्सा किं सकिरिया अकिरिया?, गोयमा! सकिरिया नो अकिरिया, जइ सकिरिया तेणेव भवग्ग॥९७६ हणणं सिझंति जाव अंतं करेन्ति?, गोयमा! अत्यगइया तेणेव भवग्रहणणं सिझंति जाच अंतं करेन्ति अत्गइया नो तेणेव भवग्गहणेणं सिझति जाव अंतं करेन्ति, जइ आपअजसं उवजीवंति किं सलेस्सा ४ है अलेस्सा?, गोयमा! सलेस्सा नो अलेस्सा, जइ सलेस्सा कि सकिरिया अकिरिया?, गोयमा! सकिरियाद नो अकिरिया, जह सकिरिया तेणेव भवग्गहणेवं सिझंति जाव अंतं करेंति?, नो इणढे समहे । वाणमं तरजोइसियथेमाणिया जहा नेरइया । सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति ।। रासीजुम्मसए पढमो उद्देसओ॥४११॥8. तरासीजुम्मतेओयनेरइया णं भंते! को उववज्जति?, एवं चेव उद्देसओ भाणियहो नवरं परिमाणं तिन्नि वा सत्त वा एकारस वा पन्नरस वा संखेजा वा असंखेजा वा उवव. संतरं तहेव, ते णं भंते! जीवा समय तेयोगा तंसमयं कडजुम्मा समयं कडजुम्मा तंसमयं तेयोगा?, णो इणढे समझे, समयं तेयोया तंसमयं 8 दावरजुम्मा जंसमयं दावरजुम्मा तंसमयं तेयोया?, णो इणढे समढे, एवं कलियोगेणवि समं, सेसं तं च | जाव वेमाणिया नवरं उववाओ सबेर्सि जहा वकंतीए । सेवं भंते! सेवं भंते! ति ॥४२॥रासीजुम्म ACEBCACASS ... अत्र मूल-संपादने सूत्रक्रम-सूचने एका स्खलना दृश्यते- सू. ८६६ स्थाने ८६७ मुद्रितं (यहां सूत्रक्रम ८६६ लिखना भूल गये है, सिधा ८६७ लिखा है ४१ शतके १ से १९६ उदेशका: वर्तते तद् अन्तर्गत अत्र उद्देशक: १ समाप्त:, उद्देशक: २ आरब्ध: एवं समाप्त:, उद्देशक: ३ आरब्ध: ~1956~
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy