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आगम
(०५)
“भगवती”- अंगसूत्र-५ ( मूलं + वृत्ति:)
शतक [३४], वर्ग [-], अंतर् शतक [१, २ १२], उद्देशक [२-११], मूलं [८५२-८५४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [०५], अंग सूत्र [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः
जाब लोगचरिमंतोति । कहिनं भंते! परंपरोववनगवायरपुढविकाइयाणं ठाणा ५०१, गोपमा ! सहाणेणं अट्ठसु पुढवीस एवं एएणं अभिलावेणं जहा पढमे उद्देसए जाव तुल्लद्वितीयत्ति । सेवं भंते ! २ति ॥ ३४३ ॥ | एवं सेसावि अट्ठ उदेसगा जाब अचरमोत्ति, नवरं अनंतरा अणंतरसरिसा परंपरा परंपरसरिसा परमा य अचरमा य एवं चेव, एवं एते एकारस उद्देसगा || (सूत्रं ८५३ ) ||३४|४|| पढमं एगिंदियसेदीसयं सम्मतं ॥ कहविहा णं भंते! कण्हलेस्सा एगिंदिया प० १, गोयमा ! पंचविहा कण्हलेस्सा एगिंदिया प० भेदो चडकओ जहा कण्हलेस्सएगिंदिपसए जाव वणरसइकाइयत्ति । कण्ट्लेस्स अपजतासुमपुढविकाइए णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पुरच्छिमिल्ले एवं एएणं अभिलाषेणं जहेब ओहिउद्देसओ जाव लोगचरिमंतेत्ति सवत्थ कण्हलेस्सेसु चैव उववापपयो । कहिनं भंते! कण्हलेस अपजत्तवायरपुढविकाइयाणं ठाणा प० एवं एएणं अभिलावेणं जहा ओहिउद्देसओ जाव तुलट्टिश्यति । सेवं भंते । २ ति । एवं एएणं अभिलाषेणं जहेब पदमं | सेडिसयं तहेव एफारस उद्देसगा भाणियचा ३४-११ ॥ वितियं एगिंदियसेडिसयं सम्मतं ॥ एवं नीललेस्सेहिवि तइयं सयं । काउलेस्सेहिवि सयं, एवं चैव चत्थं सयं । भविसिद्धियएहिवि सयं पंचमं सम्मत्तं ॥ कहविहा णं भंते! अनंतशेववना कण्हलेस्सा भवसिडिया एगिंदिया प० जहेव अणंतरोवबन्न उद्देसओ ओहिओ तहेव ॥ | कविद्दा णं भंते! परंपरोचवना कण्हलेस्सभवसिद्धिया एगिंदिया प०१, गोयमा ! पंचविहा परंपरोववन्ना कण्हले सभवसिद्धियए गिंदिया पं० ओहिओ भेदो चउकओ जाव वणरसइकाइयत्ति । परंपरोवयन्नकण्ट्लेस्स
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