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आगम
(०५)
"भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:)
शतक [१], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [८], मूलं [६५-६९] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [६५-६९]
दीप अनुक्रम [८७-९१]
व्याख्या-
मारेइ से पुरिसवेरेणं पुढे, से केण्डेणं भंते ! एवं बुचह जाव से पुरिसवेरेणं पुढे ?, से नूर्ण गोयमा ! कत्रमाणे दा. मारइस पारसव
४१ शतके || कडे संधिजमाणे संधिए निब्बत्तिज्वमाणे निव्वत्तिए निसिरिजमाणे निसिडेत्ति वत्तवं सिया ?, हंता भ-RE अभयदेवी- गवं ! कजमाणे कडे जाव निसिडेत्ति वत्तव्य सिया, से तेणद्वेणं गोयमा ! जे मियं मारेह से मियवरेणं पुढे, मृगवधादौ या वृत्तिः जे पुरिसं मारेड से पुरिसवेरेणं पुढे ॥ अंतो छपहं मासाणं मरइ काइयाए जाव पंचहि किरियाहिं पुढे, बाहिं क्रिया:
छहं मासाणं मरद काइयाए जाव पारियावणियाए चाहिं किरियाहिं पुढे (मु०६८)। पुरिसे गं सू ॥१२॥
६४-६९ भंते! पुरिसं सत्तीए समभिधंसेजा सयपाणिणा वा से असिणा सीसं छिदेखा तओ णं भंते ! से पुरिसे कतिकिरिए ?, गोयमा ! जावं चणं से पुरिसे तं पुरिसं सत्तीए अभिसंघेइ सयपाणिणा वा से असिणा सीसंद छिदइ तावं च णं से पुरिसे काइयाए अहिगरणि जाव पाणाइवायकिरियाए पंचहि किरियाहिं पुढे, आसन्नवहएण य अणवखवत्तिएणं पुरिसरेणं पुढे॥ (सू०६९)
'कच्छंसि वत्ति 'कच्छे नदीजलपरिवेष्टिते वृक्षादिमति प्रदेशे 'दहंसि वत्ति इदे प्रतीते 'उदगंसि वत्ति उदके-जलाश्रयमाने 'दवियंसि वत्ति 'द्रविके' तृणादिव्यसमुदाये 'वलयंसि वत्ति 'बलये' तृसाकारनद्या
धुदककुटिलगतियुक्तपदेशे 'नूमसि वत्ति 'नूमें' अवतमसे 'गहणंसि वसि 'गहने' वृक्षवाहीलतावितानवीरुत्स- ९२ ॥ IPामदाये 'गहणविदुग्गंसि बत्ति 'गहनविदुर्गे पर्वतैकदेशावस्थितवृक्षवायादिसमुदाये 'पब्वयंसि वत्ति पर्वते
'पब्बयविदुम्गसि वत्ति पर्वतसमुदाये 'वर्णसि वत्ति 'बने एकजातीयवृक्षसमुदाये 'वणविदुगंसि बत्ति नाना
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