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आगम
(०५)
"भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [३३], वर्ग [-], अंतर्-शतक [१-१२], उद्देशक [-], मूलं [८४४-८४९] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [८४४, ८४९]
यणस्सइकाइयाणं पजत्तगाणंति । अपज्जत्तसुहमपुढविकाइयाणं भंते ! कति कम्मप्पगडीओ बंधति ?, गोयमा!| सत्तविहबंधगावि अट्टविहबंधगावि सत्त० बंधमाणा आउयवजाओ सत्त कम्मप्पगडीओ बंधति अह बंधमाणा
पडिपुन्नाओ अह कम्मप्पगडीओ बंधंति, पज्जत्तसुष्टुमपुढविकाइया णं भंते ! कति कम्म०, एवं चेव, एवं द्र सबे जाव पज्जत्तवायरवणस्सइकाइया णं भंते! कति कम्मप्पगडीओ बंधति ?, एवं चेव । अपजत्तसुहमपुढ-14 विकाइयाणं भंते ! कति कम्मप्पगडीओ वेदेति ?, गोयमा ! चोइस कम्मप्पगडीओ घेदेति, तं०-नाणा
वरणिजं जाव अंतराइयं, सोइंदियवझं चक्विदियवझं घाणिंदियवझं जिभिदियवझं इत्थियेदवझं 18 है पुरिसवेदवझं, एवं चउक्कएणं भेदेणं जाव पजत्तवायरवणस्सइकाइया णं भंते ! कति कम्मप्पगडीओ वेदेति !, गोयमा! एवं चेव चोद्दस कम्मप्पगडीओ वेदेति । सेवं भंते ! २ति ।। (सूत्रं ८४४)। ॥शक्षा कइविहा णं भंते! अणंतरोववन्नगा एगिदिया प०१, गोयमा! पंचविहा अणतरोववन्नगा एगिदिया प००-पुढविकाजाव वणस्सइकाइया, अणंतरोववन्नगाणं भंते ! पुढविकाइया कतिविहा पं०१, गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तंजहा-सुहुमपुढविकाइया यथायरपुडविकाझ्या य, एवं दुपएणं भेदेणं जाव वणस्सइकाइया ।
अणंतरोववन्नगसुहमपुढविकाइयाणं भंते! कति कम्मप्पगडीओ प०१, गोयमा! अट्ट कम्मप्पगडीओ प० दत-नाणावरणिज जाव अंतराइयं, अणंतरोववन्नगवादरपुदविकाइयाणं भंते ! कति कम्मप्पगडीओ प०2.
गोयमा! अट्ट कम्मप्पयडीओ प००-नाणावरणिजं जाव अंतराइयं, एवं जाव अणंतरोववन्नगवादरवण
दीप अनुक्रम [१०१८-१०३२]
~ 1907~