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आगम
(०५)
"भगवती"- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [३१], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [१-२८], मूलं [८२९-८४१] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
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प्रत सूत्रांक [८२९-८४१]
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उववज्जति !, एवं जहेव ओहिओ कण्हलेस्सउद्देसओ तहेव निरवसेसं चउमुवि जुम्मेसु भाणियबो जाव अहे सत्तमपुढविकण्हलेस्सखुड्डागकलियोगनेरइया णं भंते ! को उबवजंति ?, तहेव । सेवं भंते ! २त्ति ॥ (सूत्रं | ८३४)॥३१६॥ नीललेस्सभवसिद्धिया चउसुवि जुम्मेसु तहेव भाणियबा जहा ओहिए नीललेस्सद्देसए।
सेवं भंते! सेवं भंते! जाप विहरह ॥ (सूत्रं ८३५)॥ ३७॥ काउलेस्साभवसिद्धिया चउमुवि जुम्मसु || तहेव उववाएयचा जहेव ओहिए काउलेस्स उद्देसए । सेवं भंते ! २जाब विहरइ ।। (सूत्र ८३६) ॥ ३११८॥p जहा भवसिद्धिएहिं चत्तारि उद्देसया भणिया एवं अभवसिद्धीएहि वि चत्तारि उद्देसगा भाणियचा जावई काउलेस्साउद्देसओत्ति । सेवं भंते ! २त्ति ॥ (सूत्रं ८३७) ॥ ३११२ ॥ एवं सम्मदिहीहिचि लेस्सासंजु
तेहिं चत्तारि उद्देसगा कायद्या, नवरं सम्मदिट्ठी पढमवितिएसुवि दोमुचि उद्देसएसु अहेसत्तमापुढवीए न दि उववाएयचो, सेसं तं चेव । सेवं भंते सेवं भंतेत्ति!(सूत्र ८३८)॥३११६॥ मिच्छादिट्ठीहिवि चत्तारि उद्देसगा।
कायचा जहा भवसिद्धियाणं । सेवं भंते ! २ सि(सूत्रं ८३९)॥३१॥२०॥ एवं कण्हपक्खिएहिवि लेस्सासंजुत्तेहिं चत्तारिं उद्देसगा कायवा जहेव भवसिद्धीपहिं । सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति (सूत्र ८४०)॥३२४॥ सुक्कपक्खिएहि एवं चेवं चत्तारि उद्देसगा भाणियबा जाव बालुयप्पभापुढविकाउलेस्ससुफपक्खियखुट्टागकलिओगनेरहया णं भंते ! कओ उवव०, तहेब जाव नो परप्पयोगेणं उबव० । सेवं भंते २ ति॥ (सूत्रं ८४१)॥३१॥ २८ ॥ सबेवि एए अट्ठावीस उद्देसगा। उववायसयं सम्मतं ॥३१॥
दीप अनुक्रम [१०००-१०१५]
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