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आगम
(०५)
"भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:)
शतक [२५], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [३], मूलं [७२९-९३३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत सूत्रांक
[७२८]
पुच्छा, एवं चेव एवं जाव उहमहायताओ। लोयागाससेदीओणं भंते ! पएसट्टयाए पुच्छा, गोयमा ! सिय व्याख्या- 3 ,
२५ शतके प्रज्ञप्तिःकडजुम्माओ नो तेओयाओ सिय दावरजुम्माओ नो कलिओगाओ, एवं पाईणपडीणायताओवि दाहिणुत्त उद्देशः३ अभयदेवी- रायताओवि, उट्टमहाययाओ णं पुच्छा, गोयमा ! कडजुम्माओ मो तेओगाओ नो दावरजुम्माओनो कलि-II आकाशया वृत्तिः, योगाओ। अलोगागाससेढीओ णं भंते ! पएसट्टयाए पुच्छा, गोयमा ! सिय कडजुम्माओ जाव सिय कलि-IAL:
श्रेणिगतिओगाओ, एवं पाईणपडीणायताओवि एवं दाहिणुसरायताओवि, उद्गुमहायताओवि एवं चेच, नवरं नो कलि-15 ॥८६६॥ 8 ओगाओ सेसं तं चेव (सूत्रं ७२९) ।।कति गंभंते ! सेढीओ प०?, गोयमा सत्त सेढीओ पन्नत्ताओ, तंजहा-
पिटकाल्प
यानि उजुआयता एगओवंका दुहओवंका एगओखहा दुह ओखहा चक्कवाला अद्धचकवाला ॥ परमाणुपोग्गलाणं रसू ७२९भंते! किं अणुसेढी गती पवत्तति विसेडिंगती पवत्तति ?, गोयमा ! अणुसेंढी गति पवत्ततिनो विसेढी| गती पवत्तति । दुपएसियाणं भंते ! खंधाणं अणुसेढी गती पवत्तति विसेढी गती पवत्तति एवं चेव, एवं जाव
अणंतपएसियाणं खंधाणं। नेरइयाण भंते! किं अणुसेढींगतीपवत्तति विसेढींगती पवत्तति एवं चेव, एवं जाव | माणियार्ण ॥ (सर्व ७३०) इमीसे गंभंते ! रयणप्पभाए पुढवि. केवतिया निरयावाससयसहस्सा पन्नत्ता?, 8 गोषमा! तीसं निरयावाससयसहस्सा प०, एवं जहा परमसते पंचमुद्देसगे जाव अणुतरविमाणत्ति ॥(सूत्रं
1८६६॥ ७३१) कइविहे भंते! गणिपिडए प०१, गोयमा दुवालसंगे गणिपिडए पं०२०-आयारोजाव दिहिवाओ, से किं तं आयारो?, आयारे णं समणाणं निग्गंथाणं आयारगो एवं अंगपरूवणा भाणियवा जहा नंदीए, जाव |
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दीप अनुक्रम [८७४]
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