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________________ आगम (०५) "भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [२५], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-1, उद्देशक [3], मूलं [७२६] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [७२६] गोयमा ! आयए णं संठाणे तिविहे प० तं-सेढिआयते पयरायते धणायते, तत्थ णं जे से सेढिआयते से बिहे |प०, तं०-ओयपएसिए य जुम्मपएसिए य, तत्थ णं जे ओयप० से जह• तिपएसिए तिपएसोगाढे उको अण-12 तपए तं चेव, तस्थ गंजे से जुम्मपएसे जह दुपएसिए दुपएसोगाढे उकोसेणं अणता तहेव तत्थ णं जे से पयरायतेसे दुविहे पं०, तं०-ओयपएसिए य जुम्मपएसिए य, तत्थ णं जे से ओयपएसिए से जहन्नेणं पन्नरसपएसिए पन्नरसपएसोगाढे उकोसेणं अणंत तहेव, तस्थ णं जे से जुम्मपएसिए से जहन्नेणं छप्पएसिए छपएसोगाढे उकोसेणं अणंत तहेच, तत्थ णं जे से घणायते से दुविहे पं०२०-ओयपएसिए जुम्मपएसिए, तस्थ णं जे से ओयपएसिए से जहनेणं पणयालीसपएसिए पणयालीसपएसोगाढे उकोसेगं अगंत. तहेव, तत्ध णं जे से जुम्मपएसिए से जहा बारसपएसिए बारसपएसोगाढे उकोसेणं अगंत. तहेव । परिमंडले गंभंते ! संठाणे। कतिपदेसिए ? पुच्छा, गोयमा! परिमंडले णं संठाणे दुविहे पं०, तं-घणपरिमंडले य पयरपरिमंडले य, तत्थ णं जे से पयरपरिमंडले से जहन्नेणं वीसतिपदेसिए वीसइपएसोगाढे उक्कोसेणं अर्णतपदे० तहेव, तत्थ जे से घणपरिमंडले से जहन्नेणं चत्तालीसतिपदेसिए चत्तालीसपएसोगाढे प०, उक्कोसेणं अणंतपएसिए। असंखेजपएसोगाढे पन्नत्ता (सूत्रं ७२६)॥ | 'बट्टे ण' मित्यादि, अथ परिमण्डल पूर्वमादावुक्तं इह तु कस्मात्तत्यागेन वृत्तादिना क्रमेण तानि निरूप्यन्ते ?, उच्यते, 18 वृत्तादीनि चत्वार्यपि प्रत्येकं समसजयविषमसलयप्रदेशान्यतस्तत्साधर्मात्तेषां पूर्वमुपन्यासः परिमण्डलस्य पुनरेतदभावात्प ॐASACSA5% दीप अनुक्रम [८७२] ~1725~
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
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