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आगम
(०५)
प्रत
सूत्रांक
[७२२]
दीप अनुक्रम [८६८]
“भगवती”- अंगसूत्र-५ ( मूलं + वृत्ति:)
शतक [२५], वर्ग [-] अंतर् शतक [-] उद्देशक [२], मूलं [७२२] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [०५], अंग सूत्र [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः
केकर
[त्ति स्कन्धरूपाः पुद्गलाः पुद्गलान्तरसम्पर्कादुपचिता भवन्ति 'अवचिवंति'त्ति स्कन्धरूपा एव प्रदेशविचटनेनापचीयन्ते । द्रव्याधिकारादेवेदमाह
जीवे णं भंते! जाई दवाई ओरालियसरीरत्ताए गेण्डर ताई किं ठियाई गेव्हर अठियाई गेण्डह १, गोयमा ! ठियाइंपि गेण्हइ अठियाईपि गेण्हद, ताई भंते । किं दवओ गेण्टर खेसओ गेण्हइ कालओ गण्हइ भावओ गेण्हइ १, गोयमा ! दवओषि गेण्हह खेत्तओवि गेव्हs कालभवि गेण्हर भावओवि गण्हइ ताई दवओ अणतपरसियाई दवाई खेत्तओ असंखेजपएसोगाढाई एवं जहा पन्नवणाए पढने आहारुदेसए जाब निवाघाएणं छद्दिसिं वाघायं पहुच सिय तिदिसिं सिय चउदिसिं सिय पंचदिसिं ॥ जीवे णं भंते ! जाई दबाई बेडवियसरीरत्ताए गेण्हह ताई कि ठियाई गे० अठियाई गे० १, एवं चैव नवरं नियमं छद्दिसिं एवं आहारगसरीरत्ताएवि ॥ जीवे णं भंते ! जाई दबाई तेपगसरीरसाए गिन्हह पुच्छा, गोपमा ! ठियाई गेव्हड् नो अठियाई गेव्हर सेसं जहा ओरालि सरीरस्स कम्मगसरी रे एवं चेव एवं जाव भावओवि गिण्हह, जाई दवाई दखओ गे० ताई किं एगपएसियाई गेव्हह दुपएसियाई गेण्हइ ? एवं जहा भासापदे जाव अणुपुर्वि गे० नो अणाणुपुर्वि गेves, ताई भंते । कतिदिसिं गेors ?, गोपमा ! निवाधाएणं जहा ओरालियरस ॥ जीवे णं भंते ! जाई दबाई सोइंदियत्ताए गे० जहा वेडद्वियसरी रं एवं जाव जिभिदियत्ताए फासिंदियत्ताए जहा ओरालिपसरीरं मणजोगत्ताए जहा कम्मगसरीरं नबरं नियमं
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