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________________ आगम (०५) "भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [२४], वर्ग -], अंतर्-शतक -1, उद्देशक [२४], मूलं [७१५] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [७१५] जहा जोइसिएम ववजमाणस्स नवरं सम्मविट्ठीवि मिच्छादि० णो सम्मामिच्छादिही णाणीवि अन्नाणीवि टू दोणाणा दो अन्नाणा नियम ठिती जह० दो पलिओवमाई उक्कोसेणं छप्पलिओवमाई एवतियं १, सो घेव जहन्नकालाडितिएम उववन्नो एस चेव वत्तबया नवरं कालादेसेणं जहन्नेणं दो पलिओवमा उक्कोसेणं चत्तारि पलिओवमाई एवतियं २, सो चेव उक्कोसकालहितिएसु उववन्नो जहन्नेणं तिपलिओवम उकोसेणवि तिपलिओचम एस व वत्तवया नवरं ठिती जहन्नेणं तिन्नि पलिओचमाई उक्कोसेणवि तिन्नि पलिओवमाई सेस तहेव कालादे० जह० छप्पलिओवमाई उक्कोसेणवि छप्पलिओवमाइंति एचतियं ३, सो चेव अप्पणा जहन्नकालद्वितिओ जाओ जह• पलिओवमहितिएसु उकोसे० पलिओवमद्वितिएसु एस चेव वत्तवया नवरं ओगा हणा जह० घणुहपुरत्तं उकोसेणं दो गाउयाई, ठिती जहन्नेणं पलिओवम उकोसेणवि पलिओवर्म सेसं तहेव, है कालादे०जह दो पलिओचमाई उफोसेणंपि दो पलिओवमाई एवतियं ६, सो चेव अप्पणा उक्कोसकालट्ठि-12 तीओ जाओ आदिल्लगमगसरिसा तिन्नि गमगा या नवरं ठिर्ति कालादेसं च जाणेजा ९॥ जइ संखे जवासाउयसन्निपंचिंदिय संखेजवासाउयस्स जहेव असुरकुमारेसु उववजमाणस्स तहेव नववि गमा, नवरं है| ठिति संवेहं च जाणे०, जाहे य अप्पणा जहन्नकालाहितिओ भवति ताहे तिसुवि गमएसु सम्मविट्ठीवि मिच्छादि० णो सम्मामिच्छादिही दो नाणा दो अन्नाणा नियमं सेसं तं चेच ॥ जइ मणुस्सहिंतो उववजंति | भेदो जहेव जोतिसिएसु उवबजमाणस्स जाव असंखेज्जवासाउयसन्निमणुस्से णं भंते !जे भविए सोहम्मे कप्पे NAGARB45+ दीप अनुक्रम [८६०] 5 ~1701~
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
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