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आगम
(०५)
"भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:)
शतक [२४], वर्ग -], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [१२], मूलं [७०२] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [७०२]
दीप
जघन्यस्थितिकत्वाद्भवन्ति तानि चावगाहना १ लेश्या २ दृष्टि ३ अज्ञान ४ योग ५ समुद्घात ६ स्थित्य ७ ध्यवसाना1८नुबन्धा ९ ख्यानि ॥ अथ मनुष्येभ्यस्तमुत्पादयन्नाह
जइ मणुस्सेहिंतो उवव० किं सन्नीमणुस्सहिंतो उवव० असन्नीमणुस्से ?, गोयमा ! सन्नीमणुस्सेहितो असन्नीमणुस्सेहितोवि उवव०, असन्निमणुस्से णं भंते जे भविए पुढविकाइएसु० से णं भंते ! केवतिकालं एवं जहा असन्नीपंचिंदियतिरिक्खस्स जहन्नकालद्वितीयस्स तिनि गमगा तहा एयस्सवि ओहिया तिन्नि गमगा भाणितहेव निरवसे० सेसा छ न भण्णंति १॥ जइ सन्निमणुस्सेहिंतो उवव० किं संखेन्जवासाउथ असंखेजवासाउय०१, गोयमा ! संखेजवासाउय० णो असंखेजवासाउय०, जइ संखेन्जवासाउय० किं| पज्जत्त० अपजस०, गोयमा ! पज्जत्तसंखे० अपजत्तसंखेजवासा०, सन्निमणुस्से णं भंते ! जे भविए पुढ|| विकाइएसु उवव० से णं भंते ! केवतिकालं०१ गोयमा ! जह० अंतोमु. उको० घावीसं वाससहस्सठिती-॥४ पसु, ते णं भंते ! जीवा एवं जहेव रयणप्पभाए उववजमाणस्स तहेव तिसुवि गमएसु लद्धी नवरं ओगाहणा जह• अंगुलस्स असंखेजइभार्ग उक्को पंचधणुसयाई ठिती जहा अंतोमुहतं उको पुरकोडी एवं| अणुबंधो संवेहो नवसु गमएसु जहेव सन्निपंचिंदियस्स मजिझल्लएसु तिमु गमएसु लद्धी जहेव सन्निपंचिंदि- | यस्स सेर्स तं व निरवसेसं पच्छिल्ला तिन्नि गमगा जहा एपस्स चेव ओहिया गमगा नवरं ओगाहणा जह पंचधणुस० उकोसे० पंच धणुसयाई ठिती अणुबंधो जह० पुषकोडी उकोसेणवि पुषको० सेसं तहेव नवरं
अनुक्रम [८४७]
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