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आगम
(०५)
"भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं वृत्ति:)
शतक [२४], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-1, उद्देशक [२], मूलं [६९८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [६९८]
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दीप अनुक्रम [८४३]
व्याख्या-3 अजझवसाणा पसत्था नो अप्पसत्था सेसं तं चेव संवेहो सातिरेगेण सागरोवमेण कायद्यो ९॥ जइ मणुस्से
|२४ शतके प्रज्ञप्तिःहिंतो उववर्जति किं सन्निमणुस्सहिंतो असन्निमणुस्सेहितो?, गोयमा! सन्त्रिमणुस्सेहितो नो असन्निमणुस्से- उद्देशः २ अभयदा-हिंतो उपवज्जति, जह सन्निमणुस्सहिंतो उववज्रति किं संखेजवासाउयसनिमणुस्सेहितो उपव० असंखेजवा- असुराणाया वृत्तिः२
साउयसन्निमणुस्सेहिंतो उवव०?, गोयमा! संखेजवासाउयजाव उववजंति असंखेजवासाउयजावउववजंति, मुत्पादः ॥८१९॥ असंखेजवासाउयसन्निमणुस्से णं भंते ! जे भविए असुरकुमारेसु उववजित्तए से णं भंते ! केवतिकालहि-६
सू६९८ तीएमु उववज्जेज्जा, गोयमा ! जह० दसवाससहस्सद्वितीएसु उक्को तिपलिओवमहितीएसु उव०, एवं असं| खेजबासाउयतिरिक्खजोणियसरिसा आदिल्ला तिन्नि गमगा नेयषा, नवरं सरीरोगाहणा पढमवितिएस गमएमु जहन्नेणं सातिरेगाई पंचधणुसयाई उक्कोसेणं तिन्नि गाउयाई सेसं तं चेव, तईयगमे ओगाहणा जह-18 नेणं तिन्नि गाउयाई उक्कोसेणवि तिन्नि गाउयाई सेसंजहेव तिरिक्खजोणियाणं ३, सो चेव अप्पणा जहन्नकालहितीओ जाओ तस्सवि जहन्नकालद्वितियतिरिक्खजोणियसरिसा तिन्नि गमगा भाणियचा, नवरं सरीरो-16 गाहणा तिसुवि गमएसु जह० साइरेगाई पंचधणुसयाउकोसेणवि सातिरेगाई पंचधणुसयाई सेसं तं चेय। ६, सो चेव अप्पणा उकोसकालद्वितीओ जाओ तस्सवि ते चैव पच्छिल्लगा तिनि गमगा भाणियचा नवरं
॥८१९|| सरीरोगाहणा तिमुवि गमएसु जहन्नेणं तिन्नि गाउयाई उक्कोसेणवि तिन्नि गाउयाई अवसेसं तं चेव ९॥जइ संखेजवासाउयसन्निमणुस्सेहितो उपवजह किं पजत्तसंखेजवासाउय अपज्जत्तसंखेजवासाउय०१, गोयमा! पज्ज
-5-450-44-5
MOROS
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