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आगम
(०५)
"भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [२४], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-1, उद्देशक [१], मूलं [६९३] + गाथा: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत
सूत्रांक
[६९३]
गाथा
व्याख्या- भंते ! कओहिंतो उववजंति किं नेरइएहितो उववजति तिरिक्खजोणिएहितो उववजंति मणुस्सेहितो उव- २४ शतके
प्रज्ञप्तिः कवचंति देवेहितो उववज्जति ?,गोयमाणो नेरइएहितो उवयजति तिरिक्खजोणिएहितोवि उववजंति मणुस्से- उद्देशः१ अभयदेवी-||हिंतोवि ववजति णो देवेहिंतो उववज्जति, जइ तिरिक्खजोणिएहिंतो उववजंति किं एगिदियतिरिक्खजोणि-| या वृत्तिः
असज्ञिप। एहिंतो उववर्जति बेइंदियतिरिक्खजोणिय तेइंदियतिरिक्खजोणिय० चरिंदियतिरिक्खजोणिय पचिं-g
यन्तोत्पादः ॥८०५ दियतिरिक्खजोणिएहितो उपवजंति ?, गोयमा ! नो एगिदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववजंति णो दिया।
सू६९३ णो तेइंदिय० णो चरिंदिय० पंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उवयजति, जइ पचिंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववजति किं सनीपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववजंति असन्नीपंचिंदियतिरिक्खजोगिएहितो उवव-18 जंति ?, गोयमा ! सन्निपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववजंति असन्निपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतोषि |उववजंति, जह सन्निपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववजंति किं जलचरेहिंतो उवधाजंति थलचरेहिंतो उव-|| वजति खहचरेहिंतो उववनंति ?, गोयमा ! जलचरेहिंतो उववजंति थलचरेहिंतोवि उववनंति खहचरेहि| तोवि उववजंति, जइ जलचरथलचरखहचरेहितो उपवजंति किं पजत्तएहिंतो उवववति अपजत्तएहितो |उवयजति ?, गोयमा ! पज्जत्तएहिंतो उचवजति णो अपज्जत्तएहिंतो उववजंति, पजत्ताअसन्निपंचिंदियतिरि-||211८०५॥ क्खजोणिए णं भंते ! जे भविए नेरइएसु अववजित्तए से णं भंते ! कतिसु पुढवीसु उववज्जेजा ?, गोयमा । एगाए रयणप्पभाए पुढचीए उववजेजा, पजत्ताअसन्निपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए रयण
दीप अनुक्रम [८३५-८३८]
असंज्ञी-पर्यंत: उत्पत्ति:
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