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________________ आगम (०५) "भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [२०], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [१०], मूलं [६८६] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [६८६] दीप व्याख्या- 'आइवीए'त्ति नेश्वरादिप्रभावेणेत्यर्थः 'आयकम्मुण'त्ति आत्मकृतकर्मणा-ज्ञानावरणादिना 'आयप्पओगेणं'ति आरम जागणात आरम- २०शतके प्रज्ञप्तिः व्यापारेण ॥ उत्पादाधिकारादिदमाह उद्देशः १० अभयदेवीनेरझ्या णं भंते । किं कतिसंचिया अकतिसंचिया अवत्तगसंचिया ?, गोयमा! नेरइया कतिसंचियावि| & कतिसंचि. या वृत्तिः२ अकतिसंचियाचि अवत्तगसंचियावि, से केण जाव अश्वत्तगसंचया ?, गोयमा ! जे णे नेरइया संखेजएणं| । तादि ॥७९६॥ पबेसणएणं पविसंति ते ण नेरइया कतिसंचिया जेणं नेरइया असंखेजएणं पवेसएणं पविसंति ते ण नेरइया सू ६८७ अकतिसंचिया, जे णं नेरइया एक्कएणं पवेसएणं पविसंति ते ण नेरदया अबत्तगसंचिया, से तेणढणं ४ गोयमा ! जाव अवत्सगसंचियावि, एवं जाव धणिय०, पुढविक्काइयाणं पुरुछा, गोयमा! पुढविकाइया नो कइसंचिया अकइसंचिया नो अबत्तगसं०, से केणटेणं एवं बुधइ जाव नो अबत्तगसंचिया ?, गोयमा ! पुढ-16 विकाइया असंखेज्जएणं पवेसणएणं पविसंति से तेणटेणं जाव नो अबत्तगसंचया, एवं जाव वणस्स०, दिया *||जाव चेमाणिजहा नेरइया, सिद्धा णं पुच्छा, गोयमा ! सिद्धा कतिसंचिया नो अकतिसंचया अवत्तगसं-18 चियावि, से केणढे जाव अवरागसंचियावि?, गो.जेणं सिद्धा संखेजएणं पवेसणएणं पविसंति ते णं |सिद्धा कतिसंचिया जे णं सिद्धा एकएणं पवेसणएणं पविसंति ते णं सिहा अवत्सगसंचिया, से तेणटेणं| जाव अबत्तगसंचियावि॥एएसिणं भंते । मेरइ० कतिसंचियाणं अकतिसंचियाणं अबत्तगसंचियाण य कयरे २ जाव विसेसा०, गोयमा ! सबथोवा नेरइया अवत्तगसंचिया कतिसंचिया संखेनगुणा अकतिसंचिया अनुक्रम [८०४] ॥७९६ ~1596~
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
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