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________________ आगम (०५) "भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [१७], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [५], मूलं [६०३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती"मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [६०३] यस्स उत्तरेणं इमीसे रयणप्प० पुढ० बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ उर्दु चंदिमसूरियजहा ठाणपदे जाच | मज्झे ईसाणव.सए महाविमाणे से णं ईसाणवडेंसए महाविमाणे अद्धतेरस जोयणसयसहस्साई एवं जहा वसमसए सफविमाणवत्तवया साइहवि इंसाणस्स निरवसेसा भाणियबा जाव आयरक्खा, ठिती सातिरेगा। दो सागरोवमाई, सेसं तंचेव जाव ईसाणे देविंदे देवराया ई०२, सेवं भंते ! सेवं भंतेत्ति ॥(सूत्रं ६०३) ॥१७॥ । 'कहि ण'मित्यादि, 'जहा ठाणपए'त्ति प्रज्ञापनाया द्वितीयपदे, तत्र चेदमेवम् –'उहूं चंदिमसूरियगहगणणक्खत्ततारा-14 रूवाणं बहूई जोयणसयाई बहूई जोयणसहस्साई बहूइंजोयणसयसहस्साई जाव उप्पइत्ता एत्थ णं ईसाणे णामं कप्पे पन्न इत्यादि, 'एवं जहा दसमसए सकविमाणवत्तषया इत्यादि, अनेन च यत्सूचितं तदित्यमवगन्तव्यम्-'अद्धतेरसजोयणसद यसहस्साई आयामविक्खंभेणं ऊयालीसं च सयसहस्साई बावन्नं च सहस्साई अह य अडयाले जोयणसए परिक्खेवेण मित्यादि । सप्तदशशते पञ्चमः ॥ १७-५॥ TEKAARTHENA दीप अनुक्रम [७०८] पञ्चमोद्देशके ईशानकल्प उक्तः, षष्ठे तु कल्पादिषु पृथिवीकायिकोत्पत्तिरुच्यत इत्येवंसम्बन्धस्यास्येदमादिसूत्रम् पुढविकाइए णं भंते ! इमीसे रय पुढ० समोहए २ जे भविए सोहम्मे कप्पे पुढविक्काइयत्ताए उववजिहात्तए से भंते ! किं पुर्वि उववजित्ता पच्छा संपाउणेजा पुर्वि वा संपाउणित्ता पच्छा उबव०१, गोयमा! पुर्वि द वा उववजित्सा पच्छा संपाउणेजा पुचिं वा संपाउणित्ता पच्छा उपवलेला, से केणतुणं जाव पच्छा उवव अत्र सप्तदशमे शतके पंचम-उद्देशक: परिसमाप्त: अथ सप्तदशमे शतके षष्ठात् सप्तदशपर्यन्ता: उद्देशका: आरभ्यते ~1461
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
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