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आगम
(०५)
"भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:)
शतक [१७], वर्ग -1, अंतर्-शतक [-], उद्देशक [२], मूलं [१९४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती"मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [५९४]
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४ धम्मेवि ठिता अधम्मेवि ठिता धम्माधम्मेवि ठिता, नेरह० पु०१, गोयमा ! णेरड्या णो धम्मे ठिता अधम्मे |ठिता णो धम्माधम्मे ठिता, एवं जाव चारिदियाणं, पंचिंदियतिरिक्खजो. पुरुछा, गोयमा! पंचिंदियतिरिक्ख जोणि नो धम्मे ठिया अधम्मे ठिया धम्माधम्मेवि ठिया, मणुस्सा जहा जीवा, थाणमंतरजोइ० वेमाणि जहा नेर० (सूत्रं ५९४)॥ __'से नूणं भंते !'इत्यादि, धम्मेत्ति संयमे 'चक्किया केइ आसइत्तए वत्ति धर्मादौ शक्नुयात् कश्चिदासयितुं ! नायमर्थः समर्थो, धर्मादेरमूर्तत्वात् मूर्ते एव चासनादिकरणस्य शक्यत्वादिति ॥ अथ धर्मस्थितत्वादिकं दण्डके निरूप-11 यन्नाह-'जीवा ण'मित्यादि व्यक्तं, संयतादयः प्रागुपदर्शितास्ते च पण्डितादयो व्यपदिश्यन्ते, अत्र चार्थेऽन्ययूधिकमतमुपदर्शयन्नाह
अन्नउत्थिया णं भंते ! एवमाइक्खंति जाव पवेति-एवं खलु समणा पंडिया समणोवासया बालपंडिया जस्स णं एगपाणाएवि दंडे अणिक्खित्ते से णं एगंतबालेत्ति बत्तवं सिया, से कहमेयं भंते ! एवं?, गोयमा!|M हजपणं ते अन्न उत्थिया एवमाइक्वंति जाव वत्तवं सिया, जे ते एवमाहंसु मिच्छं ते एवमा०, अहं पुण गोय-*
मा! एवमाइक्खामि जाव पवेमि एवं खलु समणा पंडिया समणोवासगा बालपंडिया जस्स णं एगपा-15 ४॥णाएवि दंडे निक्खित्ते से णं नो एगंतबालेति वत्तवं सिया ॥ जीवा णं भंते ! किं वाला पंडिया बालप-16 |डिया?, गोयमा!जीवा वालावि पंडियावि बालपंडियावि, नेरइयाणं पुच्छा, गोयमानेरड्या बाला नोपंडिया
दीप
RESEARSERICA
अनुक्रम [६९९]
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