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________________ आगम (०५) "भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [१६], वर्ग -1, अंतर्-शतक [-], उद्देशक [४], मूलं [५७२] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती"मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [५७२]] या वृत्तिः व्याख्या-1द्र वाससहस्सेहिं वा वाससयसहस्सेहिं (ण) वा खबियंति?, णो तिणढे समढे, जावतियन्नं भंते ! छहभत्तिए समणे प्रज्ञप्तिः ||निग्गंधे कम्म निज़रेति एवतियं कम्मं नरएसु नेरइया वाससहस्सेण वा वाससहस्सेहिं वा वाससयसहस्सेण (हिं)Pl K१६ शतके | उद्देशः४ अभयदेवी- वा खवयंति !, णो तिणढे समडे, जावतियन्नं भंते ! अहमभत्तिए समणे निग्गंथे कम्मं निजरेति एवतियं ४ अन्नग्लाय कम्मं मरएसु नेरतिया वाससयसहस्सेण वा वाससयसहस्सेहिं वा वासकोडीए वा खवयंति !, नो तिणढे कचतुर्थादि ॥७०४॥ समहे, जावतियन्नं मंते ! दसमभत्तिए समणे निग्गंथे कम्मं निजरेति एवतियं कम्मं नरएसु नेरतिया वास भिः कर्मक्षकोडीए वा वासकोडीहिं वा वासकोडाकोडीए वा खवयंति ?, नो तिणढे समढे, से केणडेणं भंते ! एवं बुञ्चह दायासू ५७२ जावतियं अन्नहलातए समणे निग्गंथे कम्मं निजरेति एवतियं कम्मं मरएम नेरतिथा वासेण वा वासेहि वा । वाससएण वा (जाच) बास(सय)सहस्सेण चानो खवर्षतिजावतियं चउत्थभत्तिए, एवं सं चेष पुषभणिय उचारे-12 यचं जाव वासकोडाकोडीए वा नो खवयंति, गोयमा! से जहानामए केह पुरिसे जुझे जराजजरियदेहे सिदिलतयावलितरंगसंषिणद्धगत्ते पविरलपरिसडियदंतसेढी उपहाभिहए तण्हाभिहए आउरे सुंशिर पिचासिए दुब्बले किलंते एमं महं कोसंबगंडियं सुकं जडिलं गठिलं चिकणं वाइद्धं अपत्तिथं मुंडेम परसुणा अबकमेजा, तए णं से पुरिसे महंताई २ सद्दाई करेह नो महंताई २ दलाई अबदालेह, एबामेष गोषमा ! मेरइयाणं ॥७०४॥ भूपाचाई कम्माई माडीकयाई चिकणीकयाई एवं जहा ट्रसए जाब नो महापावसाणा भचंति, से जहाना मए-कई पुरिले अहिकरर्षि आउडेमाणे महया जाव को महापञ्जयसाणा भति, से जहानामए-कोई पुरिसे। दीप अनुक्रम [६७२] -- ~1412~
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
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