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आगम
(०५)
प्रत
सूत्रांक
[५६०]
दीप
अनुक्रम
[६५९ ]
व्याख्या
प्रज्ञप्तिः अभयदेवीया वृत्तिः २
॥ ६९४॥
गोशालक चरित्रं
“भगवती”- अंगसूत्र-५ ( मूलं + वृत्ति:)
शतक [१५], वर्ग [–], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [-] मूलं [५६०] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः
अग्गिकुमारेसु देवेसु देवत्ताए उचवज्जिहिति से णं ततोहिंतो अनंतरं उचट्टित्ता माणुस्सं विग्गहं लमिहिति माणुस्सं २ केवलं बोहिं बुज्झिहिति के० २ मुंडे भवित्ता आगाराओ अणगारियं पञ्चहिति, तत्थविय णं | विराहियसामने कालमासे कालं किचा दाहिणिल्लेस असुरकुमारेसु देवेसु देवत्ताए उववज्जिहिति, से णं तओहिंतो जाव उघट्टित्ता माणुसं विग्गहं तं चैव जाव तत्थवि णं विराहियसामने कालमासे जाव किया दाहिम्यक्तवचरगिल्लेसु नागकुमारेसु देवेसु देवत्ताए उववज्जिहिति, से णं तओहिंतो अनंतरं एवं एएणं अभिलावेणं दाहिपिल्लेसु सुवन्नकुमारेसु एवं विज्जुकुमारेसु एवं अग्गिकुमारवज्जं जाव दाहिणिल्लेसु धणियकुमारेसु से णंतओ | जाव उचट्टित्ता माणुस्सं विग्गहं लभिहिति जाव विराहियसामने जोइसिएस देवेसु उववज्जिहिति, से णं तओ अनंतरं चयं चइता माणुस्सं विग्गहं लभिहिति जाव अविराहियसामन्ने कालमासे कालं किचा सोहम्मे कप्पे देवत्ताए उचवज्जिहिति, से णं तओहिंतो अनंतरं चयं चत्ता माणुस्सं विग्गहं लभिहिति केवलं बोहिं बु ज्झिहिति, तत्थवि णं अविराहियसामने कालमासे कालं किया ईसाणे कप्पे देवत्ताए उबवजिहिति, से णं तओ चइता माणुस्सं विग्गहं लभिहिति, तत्थवि णं अविराहियसामने कालमासे कालं किचा सणकुमारे कप्पे देवताए उववज्जिहिति, से णं तओहिंतो एवं जहा सणकुमारे तहा बंभलोए महासुक्के आणए आरणे, से णं तओ जाव अविराहियसामने कालमासे कालं किया सङ्घद्वसिद्धे महाविमाणे देवत्ताए उववज्जिहिति, से णं तओहिंतो अनंतरं चयं चत्ता महाविदेहे वासे जाई इमाई कुलाई भवंति - अढाई जाव अपरिभूयाई,
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~ 1392~
१५ गोशालकशते दारिकास
णयुताभवा दृढप्रतिज्ञ भवश्व
सू ५६०
| ॥ ६९४ ॥